इतिहास के पन्नों में 21 जनवरीः रूसी क्रांति के नायक लेनिन

देश-दुनिया के इतिहास में 21 जनवरी की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। इस तारीख का महत्व रूस और खासतौर पर रूसी क्रांति के नायक लेनिन के जीवन के लिए खास है। साल 1924 में 21 जनवरी को लेनिन का निधन हुआ था। विशेष यह है कि उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया। निधन के बाद लेनिन के शरीर को संरक्षित कर दिया गया।

मॉस्को के रेड स्क्वायर पर लेनिन के मकबरे में आज भी उनके शव को देखा जा सकता है। साल 1870 में 22 अप्रैल को व्लादिमीर इलिच उल्यानोव का जन्म हुआ था। दुनिया उन्हें लेनिन के नाम से जानती है। दरअसल वो एक रिवॉल्यूशनरी थे। रूसी सरकार की पकड़ से बचने के लिए उन्होंने कई अलग-अलग नाम रखे थे। इनमें से एक लेनिन था। वो रूसी क्रांति के नायक थे। इसके बाद ही 1922 में सोवियत संघ की स्थापना हुई।

लेनिन कानून की पढ़ाई करने कॉलेज पहुंचे तो उन्हें निकाल दिया गया। वजह थी उनका क्रांतिकारी चरित्र। हालांकि इसकी दूसरी वजह उनके भाई भी थे। उनके भाई एलेक्जेंडर उल्यानोव भी जार शासन के खिलाफ विद्रोह कर रहे थे। 1887 में उनके भाई को जार की हत्या की साजिश रचने में शामिल होने के लिए फांसी दे दी गई थी। कॉलेज से निकाले जाने के बाद भी लेनिन ने हार नहीं मानी और 1891 में लॉ की डिग्री लेकर ही माने।

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लेनिन के विद्रोही रुख की वजह से 1897 में जार पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर तीन साल के लिए साइबेरिया भेज दिया। यहां उन्होंने 22 जुलाई 1898 को नदेज्हदा क्रुपस्काया से शादी कर ली। लेनिन ने करीब 15 साल पश्चिमी यूरोप में गुजारे । इस अवधि में वो अंतरराष्ट्रीय रिवॉल्यूशनरी आंदोलन में अहम भूमिका निभाने लगे और रशियन सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी के बोल्शेविक धड़े के नेता बन गए।

उन्होंने यूरोप में सर्वहारा वर्ग के खिलाफ आंदोलन छेड़ा। उनका मानना था कि यह विरोध पूंजीवाद को उखाड़ फेंकने और समाजवाद की स्थापना का कारण बनेगा। 1917 में जब रूस में जार शासन का अंत हुआ तो एक अंतरिम सरकार की स्थापना हुई। इसके साथ ही वो रूस वापस लौटे और देश की कमान संभाली। 1917 में उनके नेतृत्व में जो क्रांति हुई थी, उसको बोल्शेविक क्रांति भी कहा जाता है। लेनिन मार्क्सवाद से प्रेरित थे और इसी के आधार पर उन्होंने रूसी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की।

समाज और दर्शन शास्त्र को लेकर लेनिन के मार्क्सवादी विचारों ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया। उनकी इस विचारधारा को ही लेनिनवाद के नाम से जाना जाता है। उन्हें काफी विवादित और भेदभाव फैलाने वाला नेता भी माना जाता है। लेनिन को उनके समर्थक समाजवाद और सर्वहारा वर्ग का मसीहा मानते हैं। आलोचक उन्हें ऐसी तानाशाही सत्ता के नेता के रूप में याद करते हैं, जिन्होंने राजनीतिक अत्याचार और बड़े पैमाने पर हत्याएं करवाईं।

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