इतिहास के पन्नों में 15 फरवरीः ‘झांसी की रानी’ कविता सुनते ही याद आ जाती हैं सुभद्रा कुमारी चौहान

देश-दुनिया के इतिहास में 15 फरवरी की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख का देश के स्वाधीनता संग्राम में कविता के माध्यम से रोम-रोम फड़काने वालीं कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के जीवन अटूट रिश्ता है। उनका निधन इसी तारीख को आजादी के सालभर बाद 1948 हुआ था। सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम आते ही दिमाग में ‘झांसी की रानी’ कौंध जाती है। यह उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है। बावजूद इसके कवयित्री सुभद्रा केवल यहीं तक सीमित नहीं थीं इससे कहीं आगे थीं। नाग पंचमी को जन्मी कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी विविध रचनाओं से लोगों को अब तक बांध रखा है। उनका निधन वसंत पंचमी यानी सरस्वती पूजा के दिन 15 फरवरी 1948 को हुआ था।

मात्र नौ साल की उम्र में उन्होंने पहली कविता ‘नीम’ की रचना की थी। इस कविता को पत्रिका ‘मर्यादा’ में जगह दी गई। इसके साथ ही वे पूरे स्कूल में मशहूर हो गईं। मजबूरीवश वो केवल नौवीं कक्षा तक की पढ़ाई ही पूरी कर पाईं। लेकिन अपनी कविताओं का शौक नहीं छोड़ा और लिखती गई। कवयित्री सुभद्रा की रचनाओं में कहीं यह झलक या अभाव नहीं खलता कि उन्होंने दसवीं तक भी अपनी पढ़ाई पूरी नहीं की। 16 अगस्त, 1904 में इलाहाबाद के निहालपुर में जमींदार परिवार में जन्मी सुभद्रा को बचपन से ही कविताएं लिखने का शौक था। इसके कारण वे अपने स्कूल में भी बड़ी प्रसिद्ध थीं। बाद में उन्होंने कहानियां लिखना भी शुरू कर दिया, यह उन्होंने पारिश्रमिक के लिए किया क्योंकि उस वक्त कविताओं की रचना के लिए पैसे नहीं मिलते थे।

चार बहनें और दो भाइयों वाली सुभद्रा ने स्वतंत्रता आंदोलन में आगे आई और कई बार जेल भी गईं। मध्य प्रदेश के खंडवा निवासी ठाकुर लक्ष्मण सिंह से शादी के बंधन में बंधी और यहां भी उनके रुचि का ही काम नजर आया। पति लक्ष्मण सिंह पहले से ही स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल थे। दोनों ही महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। सुभद्रा की कई रचनाओं में आजादी का उन्माद और वीर रस का सान्निध्य मिलता है। जन्म नागपंचमी और मृत्यु वसंत पंचमी, सोचिए ये तिथियां यूं ही इतनी विशेष नहीं हैं और न ही इसे मात्र संयोग कहा जा सकता है। विशेष इसलिए क्योंकि दोनों ही तारीख पंचमी की थी। इसके पीछे ईश्वर का संकेत स्पष्ट था कि जो धरा पर अनमोल होते हैं उनके लिए ऊपरवाला भी इंतजार करता है और तभी ऐसे तारीखों का मेल होता है। 15 फरवरी 1948 को सुभद्रा ईश्वर को प्यारी हो गई।

सुभद्राकुमारी चौहान के दो कविता संग्रह और तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए। उनके कविता संग्रहों में ‘मुकुल’ और ‘त्रिधारा’ हैं। कुल मिलाकर उन्होंने 46 कहानियां लिखीं। उस वक्त लड़कियों के साथ अलग तरह का व्यवहार किया जाता है। नारी के उस मानसिक दर्द को भी सुभद्रा ने अपनी रचनाओं में उतारा है। सुभद्राकुमारी चौहान के जीवन के तरह ही उनका साहित्य भी सरल और स्पष्ट है। इनकी रचनाओं में राष्ट्रीय आंदोलन, स्त्रियों की स्वाधीनता, जातियों का उत्थान आदि समाहित है। कुल मिलाकर सुभद्रा का राष्ट्रीय काव्य हिंदी में बेजोड़ स्थान रखता है। अपनी रचनाओं के जरिए उन्होंने एक बहन, एक मां व एक पत्नी समेत सच्ची राष्ट्र भक्त के भाव व्यक्त किए हैं।

सुभद्राकुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविता ‘झांसी की रानी’ है, जिसे सुनते ही रोम-रोम फड़कने लगता है। उसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं-सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी/ बूढ़े भारत में भी आयी फिर से नई जवानी थी/ गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी/ दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी/चमक उठी सन् सत्तावन में/वह तलवार पुरानी थी/बुंदेले हरबोलों के मुंह/हमने सुनी कहानी थी/खूब लड़ी मर्दानी वह तो/झांसी वाली रानी थी…।

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