देश-दुनिया के इतिहास में 22 फरवरी की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख विज्ञान की दुनिया में ‘क्लोन’ के लिए याद की जाती है। दरअसल, वर्षों से वैज्ञानिक क्लोन बनाने की कोशिश में जुटे थे, लेकिन सफल नहीं हो सके। उन्होंने सोचा कि क्यों न इसे भेड़ों पर ट्राई किया जाए, पर ये भी आसान नहीं था, क्योंकि वैज्ञानिक 227 बार विफल हो चुके थे। आखिरकार उनको सफलता मिली और पहली बार क्लोनिंग के जरिए बनी भेड़ ‘डॉली’ का जन्म हुआ। ये ऐसी भेड़ थी, जो पैदा नहीं हुई थी बल्कि इसे वैज्ञानिकों ने लैब में बनाया था।
22, फरवरी 1997 को स्कॉटलैंड के रोसलिन इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों की टीम ने इसकी घोषणा कर दुनिया चौंकाया। हालांकि, यह क्लोन भेड़ पांच जुलाई, 1996 को पैदा हो गई थी, लेकिन इसकी घोषणा सात महीने बाद की गई। भेड़ का नाम अमेरिकी सिंगर और एक्ट्रेस डॉली पार्टन के नाम पर रखा गया। यह पहली बार था, जब वैज्ञानिकों ने सेल यानी कोशिका से क्लोन बनाया था। इसके लिए न्यूक्लियस ट्रांसफर की तकनीक अपनाई गई। इसमें दो भेड़ ली गईं। एक सफेद भेड़ और दूसरी काले मुंह वाली भेड़। वैज्ञानिकों ने सफेद भेड़ की कोशिकाओं से न्यूक्लियस निकाला और उसे काले मुंह वाली भेड़ के सेल (अंडे) में डाल दिया। इसके बाद पैदा हुई डॉली भेड़। डॉली भेड़ जब पैदा हुई तो पूरी सफेद रंग की थी। दो साल की उम्र में डॉली ने पहले मेमने को जन्म दिया। उसका नाम था बोनी। उसके बाद डॉली ने पांच और मेमने पैदा किए।
साल 2001 आते-आते डॉली बीमार पड़ने लगी। उसकी हालत बहुत खराब हो गई। 14 फरवरी, 2003 को डॉली को दवाइयों का ओवरडोज देकर मार दिया गया। उसे यूथेनेशिया यानी इच्छामृत्यु दी गई। जब डॉली पैदा हुई थी, तब डॉक्टरों को उसके 11-12 साल जीने की उम्मीद थी, लेकिन डॉली साढ़े छह साल में ही मर गई। उसकी मौत के बाद जब पोस्टमार्टम किया गया, तो पता चला कि उसे लंग्स कैंसर था। भेड़ों को अकसर ये बीमारी हो जाती है। डॉली के मरने के बाद उसकी बॉडी को स्कॉटलैंड के नेशनल म्यूजियम को डोनेट कर दिया गया। आज भी उसकी बॉडी यहां म्यूजियम में रखी है। इस भेड़ को कीथ कैम्पबेल और इयान विलमट ने बनाया था।