इतिहास के पन्नों में 03 मार्चः जमशेदपुर में झलकता है जमशेदजी टाटा का विजन

देश-दुनिया के इतिहास में 03 मार्च की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख भारतीय उद्योगपति जमशेदजी टाटा के अवसान के रूप में हर बरस उद्योगजगत में बड़े अदब के साथ याद की जाती है। आज टाटा ग्रुप नमक से लेकर ट्रक तक बनाता है। पर इसे इस मुकाम तक लाने में सबसे प्रमुख भूमिका जमशेदजी टाटा की ही है।

जमशेदजी का जन्म 03 मार्च 1839 में दक्षिणी गुजरात के नवसारी में पारसी परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम जमशेदजी नौसीरवानजी टाटा था। मात्र 14 साल की उम्र में ही जमशेदजी अपने पिता के साथ मुंबई आ गए और व्यवसाय में कदम रखा था।

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सत्रह साल की उम्र में मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लिया। दो साल बाद 1858 में ग्रीन स्कॉलर (स्नातक स्तर की डिग्री) बने। जमशेदजी के जीवन के बड़े लक्ष्यों में स्टील कंपनी खोलना, विश्व प्रसिद्ध अध्ययन केंद्र स्थापित करना, अनूठा होटल खोलना और पन बिजली परियोजना लगाना शामिल था। हालांकि,अपने जीवनकाल में वे सिर्फ होटल ताज ही बनवा सके। होटल ताज दिसंबर 1903 में चार करोड़ 21 लाख रुपये के खर्च से तैयार हुआ था। यह भारत का पहला होटल था, जहां बिजली की व्यवस्था थी।

जमशेदजी के बेटे दोराब टाटा ने 1907 में देश की पहली स्टील कंपनी टाटा स्टील ऐंड आयरन कंपनी, टिस्को खोली। यह कर्मचारियों को पेंशन, आवास, चिकित्सा सुविधा और कई सहूलियतें देने वाली शायद एक मात्र कंपनी थी। जमशेदजी का विजन झारखंड के जमशेदपुर में आज भी दिखता है। टाटानगर के नाम से मशहूर इस शहर को नियोजित तरीके से बसाया गया।

आज बेंगलुरु का इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस दुनिया के नामी-गिरामी संस्थानों में से एक है। इसकी स्थापना का सपना भी जमशेदजी ने ही देखा था। इसके लिए उन्होंने अपनी आधी से अधिक संपत्ति (14 बिल्डिंग और मुंबई की चार संपत्तियां) दान कर दी थी।

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