गणेश शंकर विद्यार्थी ऐसे निडर और निष्पक्ष पत्रकार थे जिन्होंने कलम की ताकत से अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी। वे ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्होंने कलम के साथ-साथ महात्मा गांधी के अहिंसक समर्थकों और क्रांतिकारियों को समान रूप से देश की आजादी में सक्रिय सहयोग प्रदान किया।
26 अक्टूबर, 1890 को अपनी ननिहाल प्रयाग में पैदा हुए गणेश शंकर विद्यार्थी की शिक्षा-दीक्षा मुंगावली (ग्वालियर) में हुई थी। उन्होंने उर्दू-फ़ारसी का अध्ययन किया। आर्थिक कठिनाइयों के कारण वे एण्ट्रेंस तक ही पढ़ सके किन्तु उनका स्वतंत्र अध्ययन अनवरत चलता रहा। अपनी मेहनत और लगन के बल पर उन्होंने पत्रकारिता के गुणों को खुद में भली प्रकार से सहेज लिया था। वे ‘सरस्वती’, ‘अभ्युदय’, ‘प्रभा’ से जुड़े रहे और ‘प्रताप’ (साप्ताहिक) के सम्पादक हुए। इस दौरान स्वतंत्रता आंदोलन में कई बार उन्हें जेल जाना पड़ा।
25 मार्च 1931 को कानपुर के हिन्दू-मुस्लिम दंगे में लोगों को बचाते हुए विद्यार्थी जी साम्प्रदायिकता की भेंट चढ़ गए थे। उनका शव अस्पताल में लावारिस लाशों के बीच मिला। वह इतना फूल गया था कि उसे पहचानना मुश्किल था। नम आँखों से 29 मार्च को विद्यार्थी जी का अंतिम संस्कार कर दिया गया।