साल 1919 की शुरुआत में ब्रिटिश सरकार रॉलेट एक्ट लाने की तैयारी कर रही थी। इसके जरिये ब्रिटिश सरकार किसी भी भारतीय को बिना किसी मुकदमे के जेल में बंद कर सकती थी। इस कानून को लेकर भारतीयों के कड़े विरोध के बावजूद 8 मार्च से इस एक्ट को लागू कर दिया गया।
गांधीजी ने 6 अप्रैल को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। पूरे देश की तरह पंजाब में विरोध प्रदर्शन हो रहा था। इस दौरान 9 अप्रैल को अमृतसर के मशहूर नेता डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन को गिरफ्तार कर लिया गया। इन नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में 10 अप्रैल को प्रदर्शन हुआ, जिसमें पुलिस की गोलीबारी में कुछ प्रदर्शनकारी मारे गए। हालात बिगड़ता देख सरकार ने पंजाब में मार्शल लॉ लागू कर कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी ब्रिगेडियर जनरल डायर को सौंप दी।
रॉलेट एक्ट वापस लेने और नेताओं की रिहाई की मांग को लेकर 13 अप्रैल को अमृतसर के जलियांवाला बाग में सभा रखी गई। सभा में 25 से 30 हजार लोग मौजूद थे। तभी वहां जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ आ धमका और सभा में मौजूद निहत्थे लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। करीब 10 मिनट तक गोलीबारी चलती रही, जिसमें करीब 1 हजार लोगों की मौत हुई। हालांकि इस कांड की जांच के लिए बनी हंटर कमेटी ने मरने वालों की संख्या 379 ही बताई। क्रूरता का इतिहास लिखने वाले इस बर्बर नरसंहार से ही भारत की धरती पर ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिलनी शुरू हो गई।