संविधान की मूल प्रति की डिजाइन करने वाले ख्यातिलब्ध चित्रकार नंदलाल बोस का 15 अप्रैल 1966 को कोलकाता में निधन हो गया। 3 दिसम्बर 1882 को बिहार के मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर में पैदा हुए नंदलाल बोस की पेंटिंग्स पर स्वाधीनता संग्राम और देसज संस्कृति का व्यापक प्रभाव था। यह उनकी मशहूर पेंटिंग्स ‘डांडी मार्च’, ‘संथाली कन्या’, ‘सती का देह त्याग’ से समझा जा सकता है।
नंदलाल बोस को भारतीय संविधान की मूल प्रति को अपने चित्रों से संवारने का मौका मिला। उन्होंने 221 पेज के इस दस्तावेज के हर भाग की शुरुआत में 8-13 इंच के चित्र बनाए। संविधान में कुल 22 भाग हैं। इस तरह उन्हें भारतीय संविधान की इस मूल प्रति को अपने 22 चित्रों से सजाने का मौका मिला। इन 22 चित्रों को बनाने में चार साल लगे। इस काम के लिए उन्हें 21,000 मेहनताना दिया गया।
सुनहरे बॉर्डर और लाल-पीले रंग की अधिकता लिए हुए इन चित्रों की शुरुआत होती है- भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक की लाट से। अगले भाग में भारतीय संविधान की प्रस्तावना है, जिसे सुनहरे बॉर्डर से घेरा गया है, जिसमें घोड़ा, शेर, हाथी और बैल के चित्र बने हैं। भारतीय संस्कृति में शतदल कमल का महत्व रहा है इसलिए इस बॉर्डर में शतदल कमल को भी नंदलाल ने जगह दी है। अगले भाग में मोहन जोदड़ो की सील दिखाई गई है। उसके अगले भाग से वैदिक काल की शुरुआत होती है जिसमें किसी ऋषि के आश्रम का चिह्न है। मध्य में गुरु बैठे हुए हैं और उनके शिष्यों को दर्शाया गया है। बगल में एक यज्ञशाला बनी हुई है।
उन्हें विश्वभारती ने ‘देशोत्तम’ तथा अनेक विश्वविद्यालयों ने डीलिट् की उपाधि से सम्मानित किया। 1954 में वे भारत सरकार द्वारा ‘पद्मविभूषण’ से सम्मानित किए गए।