देश-दुनिया के इतिहास में 01 मई की तारीख तमाम वजह से इतिहास के पन्नों में दर्ज है। यह तारीख दुनिया भर के मजदूरों के लिए किसी बड़े दिन से कम नहीं है। दरअसल 1889 को दुनिया भर की समाजवादी और श्रमिक पार्टियों के संगठन द्वितीय अंतरराष्ट्रीय ने पेरिस सम्मेलन में मजदूरों के अधिकारों की आवाज बुलंद करने के लिए 01 मई की तारीख घोषित की थी।
यह पश्चिम में औद्योगीकरण का दौर था और मजदूरों से सूर्योदय से सूर्यास्त तक काम करने की उम्मीद की जाती थी। अक्टूबर 1884 में अमेरिका और कनाडा की ट्रेड यूनियनों के संगठन फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनाइज्ड ट्रेड्स ऐंड लेबर यूनियन ने तय किया कि मजदूर 01 मई, 1886 के बाद 24 घंटे में 8 घंटे से ज्यादा काम नहीं करेंगे। जब वह तारीख आई तो अमेरिका के अलग-अलग शहरों में लाखों श्रमिक हड़ताल पर चले गए।
इन विरोध प्रदर्शनों के केंद्र में शिकागो था। यहां दो दिन तक हड़ताल शांतिप्रिय तरीके से चली। तीन मई की शाम को मैकॉर्मिक हार्वेस्टिंग मशीन कंपनी के बाहर भड़की हिंसा में दो श्रमिक पुलिस फायरिंग में मारे गए। तीन मई को फिर दोनों पक्षों के बीच झड़पें हुईं जिनमें सात पुलिसवालों समेत 12 लोगों को जान गंवानी पड़ी। इसके बाद 1889 से लेकर 1890 तक अलग-अलग देशों में मजदूरों ने प्रदर्शन किए। ब्रिटेन के हाइड पार्क में 1890 की 01 मई को तीन लाख मजदूर आठ घंटे काम की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे। जैसे-जैसे वक्त बीता यह तारीख श्रमिकों के बाकी अधिकारों की तरफ ध्यान दिलाने का भी एक मौका बन गई।
भारत में मजदूर दिवस साल 1923 के बाद से मनाया जा रहा है। उस वक्त तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी वजूद में नहीं आई थी। हिंदुस्तान लेबर किसान पार्टी के नेता मलयापुरम सिंगारवेलु चेतियार की अगुवाई में चेन्नई में कार्यक्रम आयोजित किया गया था। कार्यक्रम में चेतियार ने 01 मई को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने की मांग की थी।