इतिहास के पन्नों में 23 जूनः बड़े मकसद के लिए डॉ. मुखर्जी ने दी प्राणों की आहुति

स्थान-श्रीनगर, साल-1953, तारीख- 23 जून, समय- तड़के 3:40 बजे। भारतीय जनसंघ के संस्थापक और अध्यक्ष डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत। पूरे देश में हलचल। निष्पक्ष जांच की मांग। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को सख्त विरोधी और देश के दूसरे राज्यों की तरह कश्मीर को देखे जाने के पुरजोर हिमायती डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इसी मकसद को हासिल करने की कोशिश में प्राणों की आहुति दी।

जुलाई 1901 को कोलकाता के संभ्रांत बंगाली परिवार में जन्मे मुखर्जी केवल 33 साल की उम्र में कोलकाता यूनिवर्सिटी के कुलपति बन गए। वहां से वे कोलकाता विधानसभा पहुंचे और उनका राजनैतिक करियर शुरू हुआ। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अपनी अंतरिम सरकार में मंत्री पद दिया लेकिन थोड़े समय बाद ही मुखर्जी ने कश्मीर के मुद्दे पर नेहरू पर तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए 6 अप्रैल 1950 को मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। वे चाहते थे कि कश्मीर में प्रवेश के लिए किसी इजाजत की जरूरत नहीं पड़े। उन्होंने साफ कहा- एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे।

इसी का विरोध करते हुए डॉ. मुखर्जी कश्मीर जाकर लोगों तक अपनी बात पहुंचाना चाहते थे। 8 मई 1953 को वे दिल्ली से कश्मीर जाने के लिए निकल पड़े। 11 मई 1953 को कश्मीर में प्रवेश करते दो सहयोगियों के साथ उन्हें शेख अब्दुल्ला की तत्कालीन सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। उन्हें पहले श्रीनगर सेंट्रल जेल भेजा गया और बाद में शहर के बाहर बने एक कॉटेज में ट्रांसफर किया गया।

एक महीने से ज्यादा समय तक कैद रखे गए मुखर्जी की सेहत लगातार बिगड़ रही थी। 19 व 20 जून की रात उन्हें प्लूराइटिस होना पाया गया, जो उन्हें 1937 और 1944 में भी हो चुका था। डॉक्टर अली मोहम्मद ने उन्हें स्ट्रेप्टोमाइसिन का इंजेक्शन दिया था। हालांकि मुखर्जी ने डॉ. अली को बताया था कि उनके फैमिली डॉक्टर के मुताबिक ये दवा उनके शरीर को सूट नहीं करती थी, फिर भी अली ने उन्हें भरोसा दिला कर ये इंजेक्शन दिया था।

22 जून को मुखर्जी को सांस लेने में तकलीफ महूसस हुई। अस्पताल में शिफ्ट किए जाने पर उन्हें हार्ट अटैक होना पाया गया। राज्य सरकार ने घोषणा की कि 23 जून की अलसुबह 3:40 बजे दिल के दौरे से मुखर्जी का निधन हो गया।

अपने बेटे के मृत्यु की खबर सुनने के बाद डॉ. मुखर्जी की मां योगमाया देवी ने कहा था- ‘मेरे पुत्र की मृत्यु भारत माता के पुत्र की मृत्यु है।’

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