कोलकाता : प० पू० प्रवर्तिनी महोदया सज्जनमणि श्री शशिप्रभाश्रीजी म० सा० का बुधवार की सुबह पांसकुड़ा, कोलाघाट के पास एक सड़क दुर्घटना में देवलोक गमन हो गया। प्रातः 6 बजे साध्वी जी यात्रा कर रही थीं, तभी पीछे से एक बोलेरो ने धक्का दिया, जिसके कारण साध्वी जी का देवलोक गमन हो गया। उनके साथ एक साध्वी जी और एक सेविका भी थी जिन्हें गंभीर चोट लगने के कारण कोलकाता के सीएमआरआई हॉस्पिटल के आईसीयू में भर्ती कराया गया है। साध्वी जी का दाह संस्कार गुरुवार को प्रातः 8:30 बजे खड़गपुर में होगा।
साध्वी जी का असली नाम किरण कुमारी था। वह ताराचंद गोलेछा और बाला देवी गोलेछा की संतान थीं। वह फलोदी (राजस्थान) से संबद्ध थीं, और विक्रम संवत 2001 में भाद्र वद अमावस्या को जन्मी थी। विक्रम संवत 2014 में ब्यावर में साध्वी शिरोमणि श्री सज्जन श्री जी म. सा. की शिष्य बनीं, और साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी के नाम से विख्यात हुईं। उन्हें विक्रम संवत 2060 में संघ रत्ना से सम्मानित किया गया।
साध्वी शशिप्रभा श्री जी ने संयम जीवन में प्रवेश करते ही जैन दर्शन के आचार्य धर्म दर्शन, तत्व आदि शास्त्रों का गहनता पूर्वक अध्ययन किया और उच्च अध्ययन के बाद व्याकरण शास्त्री के पद से सम्मानित हुईं। वे एक उच्च श्रेणी की विदूषी और प्रखर व्याख्यात्री थीं, जिनके पास हिन्दी, संस्कृत, गुजराती और राजस्थानी भाषाओं का गहन ज्ञान था। संघ विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया, उन्होंने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में अपना जीवन समर्पित किया। उनकी अनुशासनप्रियता, दृढ़ मनोबल, तप-जप संयम परायणी स्वभाव और प्रवचन पट्ट के रूप में उनकी पहचान थी।
उनके विचारों का क्षेत्र राजस्थान, गुजरात, थाली प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मेवाड़, बिहार, बंगाल, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु रहा। उन्होंने बंगाल और बिहार में जैन धर्म को खास ध्यान दिया। थाली प्रदेश में उन्होंने मंदिरों और दादावाड़ियों को सुंदरता से नवीनीकृत किया। सिद्धाचल महातीर्थ पर सांचा सुमतिनाथ जिनालय के शानदार नवीनीकरण में उनका बड़ा योगदान रहा।