इतिहास के पन्नों में 14 जुलाईः बड़ी दिलचस्प है बर्फ की कहानी

देश-दुनिया के इतिहास में 14 जुलाई की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। वैसे इतिहास में यह तारीख बर्फ के आविष्कार के रूप में दर्ज है। बर्फ आज भी हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं

14 जुलाई,1850 को मशीन से बर्फ जमाने का पहली बार प्रदर्शन किया गया था। इस मशीन को तैयार किया था अमेरिकन वैज्ञानिक डॉ. जॉन गैरी ने। ऐसा कहा जाता है कि बुखार से जूझ रहे लोगों को ठंडक देने के लिए डॉ. जॉन ने इस मशीन का अविष्कार किया। इसके बाद ही फ्रिज के अविष्कार को गति मिल सकी। अगर धरती पर मिली प्राकृतिक बर्फ की बात की जाए तो इसका इतिहास तकरीबन 2.4 अरब साल पुराना है। वैज्ञानिकों ने उस समय को हुरोनियम हिमयुग का नाम दिया, जो 2.1 अरब साल पहले खत्म भी हो चुका है। एक समय भारत भी अपने प्रयोग के लिए बर्फ खरीदता था।

दुनिया में बर्फ का सबसे पहला कारोबार फ्रेडरिक ट्यूडर ने किया। उन्हें आइस किंग कहा जाता है। ट्यूडर ने बर्फ का अविष्कार होने से पहले ही प्राकृतिक बर्फ की बिक्री शुरू की थी। उन्होंने पहली बार बर्फ की बड़ी खेप 1806 में कैरेबियाई देश भेजी, लेकिन यह प्रयास पूरी तरह विफल रहा, क्योंकि गर्म देश तब तक इसके लिए तैयार नहीं थे। इसके बाद ट्यूडलर से सैमुअल ऑस्टिन ने बर्फ की सबसे बड़ी खेप खरीदी। सैमुअल ऑस्टिन अपने साथ बर्फ लेकर 1833 में कोलकाता पहुंचा। उस समय 100 टन बर्फ लाई गई थी। इससे अंग्रेजों के दिल बाग-बाग हो गए। इसके लिए स्वयं तत्कालीन गवर्नर जरनल ने जहाज के कप्तान का शुक्रिया अदा किया। यह खबर मुंबई और दिल्ली तक पहुंची तो अंग्रेज और धनी भारतीयों (अधिकांश पारसी) ने बर्फ जमा करने के लिए बर्फघर बनाए। भारत में यह व्यवसाय काफी फला-फूला। व्यापारी ट्यूडर ने 20 साल में तब 16 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाया।

प्राचीन भारत में राजा और महाराजा कैसे बर्फ मंगवाते थे? मुगल बादशाह कैसे इसका इस्तेमाल करते थे? इसकी कहानी बेहद दिलचस्प है। कहा जाता है कि राजा-महाराजा, सम्राट और धनी लोग पहाड़ों से बर्फ के टुकड़े मंगवाते थे। भारत में मुगल बादशाह हुमायूं ने 1500 में कश्मीर से बर्फ को तोड़कर उसकी सिल्लियों का आयात करना शुरू किया। फिर मुगल राजा फलों के रस को बर्फ से ढके पहाड़ों की ओर भेजते थे। वहां उन रसों को जमाकर शर्बत बनाते थे। फिर इसे गर्मियों में पीते थे।

मुगलकाल में बर्फ को पिघलने से रोकने के लिए उस पर सॉल्टपीटर (पोटेशियम नाइट्रेट) छिड़का जाता था। कहते हैं कि कुल्फी भारत में मुगलकाल से बनना शुरू हुई। अकबर के शासनकाल में हिमालय की वादियों से बर्फ लाई जाती थी। इसके लिए हाथी, घोड़ों और सिपाहियों की सहायता ली जाती थी। आगरा से हिमालय पर्वत की दूरी करीब 500 मील है। बुरादे और जूट के कपड़ों में लपेटकर बर्फ को हिमालय से आगरा तक पहुंचाया जाता था। दूरी अधिक होने के कारण बर्फ की बड़ी सिल्ली आगरा पहुंचते-पहुंचते छोटी सी रह जाती थीं। मुगलों की भांति महाराजा रणजीत सिंह भी हिमालय से बर्फ मंगवाया करते थे। अंग्रेजो को बर्फ मंगवाने को यह तरीका बहुत महंगा लगा था। उन्होंने दिल्ली में ही बर्फ जमाने का प्रबंध किया। दिल्ली गेट से तुर्कमान गेट तक खंदकें खोदकर उनमें नमक मिला पानी भर कर टाट और भूसे की मदद से सर्दियों में बर्फ की पपड़ी तैयार की जाती थी जिसे विशेष गड्ढों से गर्मियों तक सुरक्षित रखा जाता था। रोम का कुख्यात सम्राट नीरो भी दूरदराज के पहाड़ों से बर्फ मंगवाया करता था और उसमें बेर आदि फल मिलाकर उसे खाता था।

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