14 सितंबर 1959 की रात लूना-2, बारह हजार किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से चांद की सतह से टकराया। इतनी भीषण गति से टकराने से लूना-2 पूरी तरह नष्ट हो गया। सोवियत संघ के लिए ये बड़ा झटका था लेकिन चांद की सतह को छूने की कामयाबी फिर भी बड़ी थी।
दरअसल, दुनिया का सबसे पहला अंतरिक्ष यान लूना-2 था, जिसने चांद की सतह को छुआ। इसे लुनिक-2 भी कहा जाता है। सोवियत संघ ने फर्स्ट मून लैंडिंग मिशन के तहत लूना-2 अंतरिक्ष यान को 12 सितंबर 1959 को लॉन्च किया था। सोवियत संघ ने लंबे समय से चल रहे अपने इस मिशन को पूरी तरह गोपनीय रखा था और दुनिया को इसकी भनक भी नहीं लगी। जब इसकी लॉन्चिंग हुई तो दुनिया भौंचक रह गई। लूना-2 भले नष्ट हो गया लेकिन इस मिशन से वैज्ञानिकों को कई अहम जानकारियां मिली। इससे पता चला कि चांद का कोई प्रभावी चुंबकीय क्षेत्र नहीं है और चांद पर कोई रेडिएशन बेल्ट भी नहीं मिला था।
सोवियत संघ की इस वैज्ञानिक सफलता के साथ अमेरिका के साथ उसकी जबर्दस्त होड़ शुरू हो गई। क्योंकि अमेरिका ने चंद्रमा तक पहले मिशन की प्लानिंग 17 अगस्त 1958 को बनाई थी, लेकिन ‘पायनियर 0′ का प्रक्षेपण असफल रहा। अमेरिका को छह मिशन के बाद सफलता मिली जब 20 जुलाई 1969 को अपोलो 11 मिशन के जरिए चांद पर अमेरिकी यान उतरा था। अमेरिका के अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन चांद पर उतरने वाले क्रमश: पहले और दूसरे अंतरिक्ष यात्री बने थे।