कलकत्ता विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

कोलकाता : हिंदी विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय एवं केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय (उच्चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) के संयुक्त तत्वावधान में ‘हिंदी साहित्य के माध्यम से तनाव प्रबंधन कौशल’ विषयक आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी (निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय) ने कहा कि एक संगोष्ठी से 12 कौशल का विकास होता है। उन्होंने बताया कि तनाव एक मानसिक विकार है जिसका केंद्र ‘मन’ हैं। साहित्य तनाव में भी उदात्त सोचने की प्रेरणा देता है।

सर्वप्रथम केंद्रीय हिंदी निदेशालय के उप-निदेशक एन. श्रीनिवासन ने निदेशालय द्वारा विश्वस्तर पर हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए किये जा रहे विभिन्न कार्यों का उल्लेख किया।

कई सत्रों में विभाजित इस संगोष्ठी में भारत के विभिन्न विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों में पूर्व प्रोफ़ेसर डॉ. चन्द्रकला पाण्डेय और प्रो. शम्भुनाथ तथा प्रो. दामोदर मिश्र, प्रो. कमलेश पांडेय, प्रो. प्रमोद कोवप्रत, प्रो. विनम्र सेन सिंह, प्रो. जय कौशल, प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह, प्रो. प्रफुल्ल कुमार, डॉ. अमित राय, डॉ. ललित कुमार झा, डॉ. कुलदीप कौर, डॉ. सुनीता मण्डल, डॉ. राजेश प्रसाद, प्रो. दिनेश कुमार चौबे, डॉ. ममता त्रिवेदी, डॉ. रामचन्द्र रजक, प्रो. दिलीप मेहरा, प्रो. सुनील कुमार, प्रो. विनय कुमार सिन्हा, डॉ. सुलेखा कुमारी और अजेयन्द्रनाथ त्रिवेदी (राजभाषा अधिकारी) आदि ने अपने सारगर्भित वक्तव्य से श्रोताओं को समृद्ध किया जिससे तनाव प्रबंधन कौशल के नए आयाम खुले और तनाव से होनेवाली समस्यायों के समाधान पर भी विस्तृत चर्चा की गई।

कई विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने शोध-प्रपत्र वाचन भी किया। वक्ताओं और शोधार्थियों ने इस बात पर विशेष बल दिया कि वर्तमान युग में तनाव मनुष्य के जीवन में व्याप्त है। इसका प्रबंधन उपभोगवाद का त्याग कर संयमित जीवन शैली अपनाकर ही किया जा सकता है।

संगोष्ठी की शुरुआत सरस्वती वंदना एवं आमंत्रित अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। इस संगोष्ठी का सफल संयोजन कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. राम प्रवेश रजक ने किया। उन्होंने स्वागत भाषण में सभी आमंत्रित अतिथियों, वक्ताओं, प्राध्यापकों, शोधार्थियों एवं छात्र-छात्राओं का अभिवादन करते हुए कलकत्ता विश्वविद्यालय के गौरवशाली इतिहास का उल्लेख किया।

कलकत्ता वि.वि. से सम्बद्ध कॉलेज के प्राध्यापकों द्वारा संचालन किया गया।

संगोष्ठी को सफल बनाने में प्राध्यापकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।

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