◆ झुंझुनूं प्रगति संघ के 67वें स्थापना दिवस पर विशेष ◆
भारत की संस्कृति में जड़ों का महत्व बेहद गहरा है। कहावत है, “कोई भी पेड़ तब तक हरा-भरा रहता है जब तक उसकी जड़ें जमीन से जुड़ी होती हैं।” इस कहावत का तात्पर्य यह है कि किसी भी व्यक्ति या समुदाय की पहचान उसके मूल और संस्कारों से जुड़ी होती है। झुंझुनूं, जो राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, इस तथ्य का एक जीवंत उदाहरण है। यह शहर अपनी वास्तुकला और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है। यहाँ की हवेलियाँ और मंदिर न केवल धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं, बल्कि ये भारतीय कला और संस्कृति की अद्भुत मिसाल भी हैं। बाउलियों (पानी के कुएं) ने इस क्षेत्र में पानी की कमी को दूर किया है, और ये सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र भी रहे हैं। यहाँ की स्थापत्य कला और डिजाइन, भारतीय वास्तुकला की समृद्धि को दर्शाती है। यहां की उर्वर भूमि और संस्कृति ने न केवल अपने निवासियों को जीवन के सुंदरता का अनुभव कराया, बल्कि उनके भीतर एक अद्वितीय पहचान भी विकसित की। झुंझुनूं केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि यह राजस्थान के इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ की धार्मिक और प्राकृतिक सुंदरता भी इसे एक अद्वितीय पहचान देती है। हमारी जन्मभूमि हमारे जीवन का आधार होती है। यह वह स्थान है जहाँ हम बड़े होते हैं, जहाँ हमारे संस्कार बनते हैं और जहाँ से हम अपनी पहचान प्राप्त करते हैं। झुंझुनूं की धरती अपने आप में अनेक कहानियाँ समेटे हुए है। यहाँ की मिट्टी में न केवल खेती का गुण है, बल्कि यहां के लोगों में परिश्रम, सच्चाई और समर्पण की भावना भी विद्यमान है। जैसे पेड़ की जड़ें उसे मजबूत बनाती हैं, वैसे ही हमारी संस्कृति और धर्म हमारी पहचान को संजीवनी देते हैं।
झुंझुनूं के निवासी, विशेषकर मारवाड़ी, अपनी मातृभूमि से दूर रहते हुए भी वहां की संस्कृति और आचार-विचार को कभी नहीं भूलते। चाहे वे किसी भी कोने में क्यों न रहें, उनकी आत्मा हमेशा अपनी जड़ों से जुड़ी रहती है। प्रवासी मारवाड़ी जब भी कहीं जाते हैं, वे न केवल वहां की संस्कृति को अपनाते हैं, बल्कि अपनी भी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखते हैं। यह प्रवासियों का एक अनूठा गुण है कि वे जहाँ भी जाएं, वहां के लोगों के साथ सहजता से घुल-मिल जाते हैं। मारवाड़ी समुदाय की उद्यमिता की कहानी अद्वितीय है। वे जहाँ भी जाते हैं, वहां अपने व्यवसायिक कौशल से न केवल अपने लिए एक नई पहचान बनाते हैं, बल्कि उन स्थानों की आर्थिक स्थिति को भी सशक्त करते हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों में मारवाड़ी व्यापारियों ने दुर्गम स्थलों को व्यापार के लिए सुलभ बनाया है।
मारवाड़ियों के संदर्भ में सच ही कहा जाता है, “जहां न पहुंचे गाड़ी, वहां पहुंचे मारवाड़ी।” उनके व्यापारिक गुण ने उन्हें एक अलग पहचान दी है, और वे हमेशा अपने संस्कारों को लेकर चलते हैं। झुंझुनूं कई प्रमुख उद्योगपतियों का जन्मस्थान है, जिन्होंने विभिन्न उद्योगों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। घनश्याम दास बिड़ला, बसंत कुमार बिड़ला, कुमार मंगलम बिड़ला, शिव नारायण अग्रवाल, ओम प्रकाश जिंदल, और एस.के. बिड़ला जैसे उद्योगपति इस क्षेत्र की पहचान को और भी बढ़ाते हैं। इन उद्योगपतियों ने न केवल भारतीय उद्योग को समृद्ध किया है, बल्कि समाज के विभिन्न पहलुओं में भी महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है।
झुंझुनूं सैनिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है और इसे “वीरों की धरती” के नाम से जाना जाता है। इस जिले ने भारतीय सशस्त्र बलों में अनेक वीर सैनिक और अधिकारी प्रदान किए हैं। यहाँ के लोगों में देशभक्ति और सेवा की भावना प्रबल है, जो इस क्षेत्र की विशेषता है। यह वीरता न केवल युद्ध के मैदान में, बल्कि सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में भी प्रदर्शित होती है। इसके साथ ही झुंझुनूं शिक्षा के क्षेत्र में भी अग्रणी है। यहाँ के उत्कृष्ट शैक्षिक संस्थान और उच्च शिक्षा की सुविधाएँ इसे राजस्थान में एक महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्र बनाती हैं। महिला शिक्षा के क्षेत्र में भी झुंझुनूं ने काफी प्रगति की है। स्वामी विवेकानंद की शिकागो यात्रा में भी झुंझुनूं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
कोलकाता जैसे बड़े शहरों में बसे झुंझुनूं के प्रवासी जब अपने जन्मभूमि की बात करते हैं, तो उनकी आंखों में एक चमक आ जाती है। उनके लिए झुंझुनूं केवल एक स्थान नहीं है, बल्कि यह उनका परिवार, उनकी संस्कृति और उनके लिए भावनाओं का एक गहरा बंधन है। कोलकाता में बसे झुंझुनूंवासियों के लिए झुंझुनूं मां है, जबकि कोलकाता उनके लिए मौसी की तरह है। इस अद्भुत प्रेम और जुड़ाव को समझना कोई कठिन काम नहीं है। यह अद्भुत प्रेम और जुड़ाव प्रवासी मारवाड़ी के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। जब भी वे अपनी जन्मभूमि की बात करते हैं, उनकी आँखों में एक चमक आ जाती है। यह प्रेम न केवल व्यक्तिगत भावनाओं का प्रतीक है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर का भी बखान करता है।
आज, जब झुंझुनूं प्रगति संघ अपना 67वां स्थापना दिवस मना रहा है, यह केवल एक संगठन का जश्न नहीं है, बल्कि यह झुंझुनूं के सभी प्रवासी निवासियों के लिए एक भावनात्मक बंधन का प्रतीक है। संघ ने हमेशा समाज के हितार्थ काम किया है और भविष्य में भी इसी दिशा में कार्य करता रहेगा। हाल ही में नवनिर्मित भवन संघ की स्थायी पहचान बनेगा, जहाँ लोग न केवल एकत्रित होंगे, बल्कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर को भी सहेजेंगे।
झुंझुनूं, अपने आप में एक अद्वितीय पहचान है। यह हमारी जड़ों की ताकत को दर्शाता है, जो हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। चाहे हम कहीं भी रहें, हमारी पहचान हमेशा हमारी जन्मभूमि से जुड़ी रहती है। झुंझुनूं के प्रवासी मारवाड़ी इस बात का उदाहरण हैं कि एक मजबूत जड़ें हमें जीवन की कठिनाइयों से लड़ने और सफल होने की प्रेरणा देती हैं। झुंझुनूं की मिट्टी में बसने वाला हर एक व्यक्ति उस मिट्टी का अभिमान है, जो उन्हें उनके मूल से जोड़ती है। आखिरकार, झुंझुनूं की मिट्टी में बसने वाला हर व्यक्ति उस मिट्टी का अभिमान है, जो उन्हें उनके मूल से जोड़ती है। यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम अपनी जड़ों को ना भूलें और उन्हें हमेशा संजीवनी देते रहें, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी अपनी सांस्कृतिक पहचान को गर्व से जी सकें।