कोलकाता : पश्चिम बंगाल में बुधवार को छह विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इन उपचुनावों में अपना प्रमुख विपक्षी दल का दर्जा बनाए रखने के लिए प्रयासरत है। इन छह सीटों में से केवल मादारीहाट सीट पर भाजपा का कब्जा है, जहां भाजपा ने 2016 और 2021 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की थी। भाजपा के लिए यह सीट बचाए रखने की बड़ी चुनौती है।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार को आशंका है कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस सत्ता की ताकत और पुलिस प्रशासन के सहारे निष्पक्ष मतदान को प्रभावित कर सकते हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा ने कई सीटें गंवाई हैं, जिससे पार्टी के विधायकों की संख्या 77 से घटकर 68 रह गई है। अब अगर मदारीहाट सीट भी भाजपा के हाथ से निकल गई, तो यह संख्या और घट जाएगी।
मदारीहाट पर भाजपा की उम्मीदें
मदारीहाट सीट भाजपा के लिए ‘लक्ष्मीयुक्त’ मानी जाती है। 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने इस क्षेत्र में बढ़त बनाए रखी थी। भाजपा प्रत्याशी मनोज टिग्गा का दावा है कि “अगर निष्पक्ष मतदान हुआ तो हम पहले से भी बड़े अंतर से जीतेंगे।” हालांकि, पार्टी के अंदर भी टिग्गा को लेकर कुछ विवाद हैं। माना जा रहा है कि उन्होंने पूर्व नेता जॉन बारला को दरकिनार कर अपनी स्थिति मजबूत की, जिससे भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ टिग्गा की दूरी बढ़ गई।
अन्य सीटों पर बीजेपी का संघर्ष
बाकी पांच सीटों में, मदारीहाट के अलावा, भाजपा का प्रदर्शन हाल के लोकसभा चुनावों में कमजोर रहा था। फिर भी, बांकुड़ा जिले की तालडांगरा सीट से भाजपा को कुछ उम्मीदें हैं, क्योंकि यहां भाजपा का प्रभाव बना हुआ है। तालडांगरा में भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष सरकार को प्रचार के लिए उतारा है, जो पिछले लोकसभा चुनाव में यहां तृणमूल कांग्रेस से हार गए थे। साथ ही, बिष्णुपुर के सांसद सौमित्र खां और पूर्व सांसद लॉकेट चट्टोपाध्याय को भी इस क्षेत्र की जिम्मेदारी दी गई है।
भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी, सुकांत मजूमदार और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने इन छह सीटों पर प्रचार किया। इस बार मिदनापुर सीट पर भी भाजपा का मुकाबला तृणमूल कांग्रेस से है। पिछले चुनाव में मिदनापुर विधानसभा में केवल 2,170 वोटों का अंतर था। इसके अलावा, कूचबिहार के सिताई में भाजपा पिछली बार 28 हजार वोटों से पीछे रही थी। उत्तर 24 परगना जिले के नैहाटी और हड़ोआ में भी भाजपा पिछड़ी हुई थी, जहां तृणमूल ने भारी मतों से जीत हासिल की थी।
भाजपा का मुख्य उद्देश्य इस चुनाव में तृणमूल के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखना है।