सुरेन्द्र प्रताप सिंह की पत्रकारिता में संवेदनशीलता के साथ प्रतिबद्धता थी : मोहम्मद सलीम

फोटो कैप्शन : सेमिनार के दौरान बोलते हुए मोहम्मद सलीम।  उत्तम सेनगुप्ता, सुदेष्ना बसु, विनीत शर्मा, संतोष सिंह और देबजानी चौबे (दाएं से बाएं)।

कोलकाता : पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज ने बुधवार को वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र प्रताप सिंह की 76वीं जयंती पर “सुरेन्द्र प्रताप सिंह की पत्रकारिता का महत्व” पर सेमिनार आयोजित किया।

राजस्थान सूचना केन्द्र में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार उत्तम सेनगुप्ता ने की।

‘आज तक’ कलकत्ता की पहली प्रतिनिधि सुदेष्ना बसु ने कहा कि एस पी सिंह के अधीन काम करते हुए कहा, ‘कभी महसूस नहीं हुआ कि वे हमारे बॉस हैं। वे गाइड करते थे। रिपोर्टिंग के मामले में डाँट पड़ती थी।उनकी जिंदगी में सादगी थी। आज की पत्रकारिता में सादगी, वसूल, आदर्श और संवेदनशीलता का अभाव है।’

युवा पत्रकार देवजानी चौबे ने कहा कि चौथे स्तंभ को निरपेक्ष होना चाहिए था लेकिन आज की मीडिया की निरपेक्षता पर सवाल उठ रहे हैं।एस पी सिंह सच के पक्ष में और झूठ के खिलाफ पत्रकारिता करते थे।

राजस्थान पत्रिका, कोलकाता के संपादक विनीत शर्मा ने कहा कि एस पी सिंह के बारे में बोलना सूरज को दीया दिखाना है।
पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज के प्रधान संरक्षक और पूर्व सांसद मोहम्मद सलीम ने कहा कि संवेदनशीलता एस पी सिंह की पत्रकारिता में ही नहीं वसूल में भी थी। वे श्रोताओं से आम बोलचाल की भाषा में सीधे संवाद करते थे। उन्होंने रोजमर्रा की भाषा को पत्रकारिता में डाउनलोड किया था। टेक्नोलॉजी से हमें करीब लाने की बात थी, राजनीति हमें एक दूसरे से दूर कर रही है। उपहार सिनेमा में अग्निकांड को सनसनीखेज की जगह संवेदनशील दृष्टि से पेश किया था, उनकी पत्रकारिता अर्थवान थी।

सलाम दुनिया के संपादक संतोष सिंह ने अपने वक्तव्य से श्रद्धांजलि दी।

उत्तम सेनगुप्ता ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि आनंद बाजार पत्रिका के ऑफिस में सुरेन्द्र प्रताप सिंह से पहली मुलाकात उस समय हुयी जब वे रविवार के संपादक थे। उनके अंदर हीरे को खोज निकालने का हुनर था। सुरेन्द्र प्रताप सिंह के दौर में जनता के मुद्दों पर जनता के बीच संपादक बहस करते थे, वह अब खत्म हो गया है। पत्रकारिता जितनी बदली है और भी बदलेगी। सुरेन्द्र प्रताप सिंह के पीछे नेता दौड़ते थे, आज नेता के पीछे संपादक दौड़ते हैं। पत्रकारिता अगर पाठकों के अंदर संवेदना नहीं पैदा करती है तब उसका कोई महत्व नहीं है।

केशव भट्टड़ ने संचालन और गोपाल शुक्ला ने आभार व्यक्त किया।

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