कोलकाता : हिन्दी के वरिष्ठ कवि ध्रुव देव मिश्र “पाषाण” नहीं रहे। उन्होंने उत्तर प्रदेश के देवरिया में उनके छोटे बेटे वाचस्पति मिश्र के आवास पर मंगलवार की सुबह अंतिम साँस ली।
पाषाण जी का जन्म उत्तर प्रदेश के गाँव इमिलिया, जिला देवरिया में 9 सितंबर, 1939 को पिता संत प्रसाद मिश्र और माता राजपति देवी के घर हुआ। पहली पत्नी विद्यावती देवी के निधन के बाद शांति देवी से उनका दूसरा विवाह हुआ। अर्चना, विश्वदेव, सरोज, नरेंद्र, देवेंद्र, वाचस्पति, घनश्याम और सर्जना उनकी संतान हैं। पाषाण जी अपने पीछे भर पूरा परिवार और ढेर सारे चाहनेवालों को छोड़ गए हैं। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है।
कोलकाता राजस्थान सांस्कृतिक विकास परिषद के महासचिव केशव भट्टड़ ने ‘पाषाण ‘ के निधन पर उनकी साहित्यिक कृतियों का ज़िक्र करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी।
उनकी प्रकाशित रचनाएं हैं – विद्रोह (नाटक,1958), लौट जाओ चीनियों (काव्य पुस्तिका, 1962), एक शीर्षक हैं कविता और पांच अन्य कविताएं (1968), बंदूक और नारे (लंबी कविता, 1968), मैं भी गुरिल्ला हूँ (काव्य पुस्तिका, 1969), कविता तोड़ती है (काव्य पुस्तिका, 1977), विसंगतियों के बीच (1978), धूप के पंख (काव्य संग्रह,1983), खंडहर होते शहर के अंधेरे में (1988), वाल्मीकि की चिंता (लंबी कविता, 1992), चौराहे पर कृष्ण (लंबी कविता, 1993), ध्रुवदेव मिश्र पाषाण की कुछ कविताएं (रमाशंकर प्रजापति के संपादन में, 2000), पतझड़-पतझड़ वसंत (काव्य संग्रह, 2009) आदि हैं ।
उन्होंने देवरिया टाइम्स (हिंदी साप्ताहिक, 1964), प्रतिबद्ध (लघु पत्रिका, 1970), प्रतिज्ञ (काव्य संग्रह, 1977) का संपादन और प्रस्थान (लघु पत्रिका, 1979), खेक-खेल में (बाल कविताएं, 1985), जनपक्ष (साप्ताहिक, 1977), सूरदास (एक सान्दर्भिक पुनरावलोकन, 1978), महाप्राण निराला (1998) का सह-संपादन किया।