आसनसोल : पश्चिम बर्दवान जिले के चित्तरंजन में एक बार फिर जंगली मधुमक्खियों के हमले से दहशत फैल गई। एक ही दिन में 12 लोग इन हमलों में घायल हुए हैं, जिनमें से चार को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। गंभीर रूप से घायल सुशील दास नामक एक व्यक्ति को आईसीसीयू में रखा गया है। पिछले डेढ़ महीने में यह मधुमक्खियों का तीसरा बड़ा हमला है, जिसने रेलवे शहर में चिंता बढ़ा दी है।
रूपनारायणपुर से चित्तरंजन में प्रवेश के समय तीन नंबर गेट इलाके में मधुमक्खियों ने दो बार हमला किया। सुबह करीब 11 बजे और फिर दोपहर 1:30 बजे मधुमक्खियों के झुंड ने सड़क से गुजर रहे लोगों को निशाना बनाया। बाइक सवार से लेकर पैदल चलने वाले तक कोई नहीं बच पाया। हमले में घायल मानिक नस्कर ने बताया कि वह सड़क पर गिर पड़े और कई अन्य लोगों के साथ दर्द से तड़पने लगे। स्थानीय लोगों और आरपीएफ कर्मियों की मदद से सभी को अस्पताल पहुंचाया गया।
दोपहर के हमले में आमलादही बाजार के व्यापारी सुशील दास गंभीर रूप से घायल हुए। दुकान बंद कर स्कूटी से अपने घर लौटते समय मौमाछियों के झुंड ने उन्हें घेर लिया। वे स्कूटी छोड़कर सड़क पर गिर गए और बेहोश हो गए। वहां से गुजर रहे तृणमूल छात्र परिषद के नेता मिथुन मंडल ने स्थानीय लोगों की मदद से उन्हें बचाया और कस्तूरबा गांधी अस्पताल पहुंचाया। डॉक्टरों के मुताबिक, सुशील के चेहरे, सिर और शरीर के कई हिस्सों में डंक फंसे थे, जिन्हें निकालकर उन्हें आईसीसीयू में भर्ती किया गया।
उसी अस्पताल में तीन अन्य घायल भी भर्ती हैं। चित्तरंजन के प्रिंसिपल चीफ मेडिकल ऑफिसर राजकुमार मुखोपाध्याय ने सोमवार को बताया कि चार घायलों को जरूरी इलाज दिया जा रहा है।
इससे पहले 28 फरवरी और दो अप्रैल को भी चित्तरंजन में मधुमक्खियों के हमले की घटनाएं हो चुकी हैं। 28 फरवरी को बोर्ड परीक्षा देकर लौट रहे एक छात्र और उसके रेलकर्मी पिता को मधुमक्खियों ने हमला कर घायल कर दिया था। दो अप्रैल को जीएम ऑफिस के पास दो रेलकर्मी और दो आरपीएफ जवानों को मधुमक्खियों ने घायल किया था।
मधुमक्खियों के बार-बार हमले के पीछे कारण को लेकर विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है। काज़ी नज़रुल विश्वविद्यालय के पशु-पतंग विशेषज्ञ प्रो. असमंज चट्टराज के अनुसार, पर्यावरण, ध्वनि प्रदूषण या रासायनिक कारणों से मधुमक्खियों के घोंसले टूट रहे हैं, जिससे वे इंसानों को शत्रु समझकर हमला कर रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि डंक मारने वाली मधुमक्खियों खुद भी मर जाती है।