मंत्रपूत भारत के मेधापुत्र थे लोढ़ाजी : पाषाण

  • प्रो. कल्याणमल लोढ़ा जन्मशती समारोह सम्पन्न

कोलकाता : ‘कर्मनिष्ठ साधक, सर्वसमावेशी व्यक्तित्व के धनी थे प्रो.लोढ़ा। वे मंत्रपूत भारत के मेधापुत्र थे। उनका दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करना सौभाग्य की बात रही है। वे सदैव प्रतिभाओं की तलाश करते थे। उन्होंने सहृदयता का कोश कभी खाली नहीं किया।’ ये बातें विशिष्ट कवि ध्रुवदेव मिश्र ‘ पाषाण’ ने रविवार को जालान पुस्तकालय सभागार में श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय तथा सेठ सूरजमल जालान पुस्तकालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित प्रो. कल्याणमल लोढ़ा जन्मशती समारोह के प्रथम आयोजन को सम्बोधित करते हुए कहीं।

इस मौके पर डॉ. अनिल शुक्ल ने प्रख्यात साहित्यकार डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र के लिखित उद्घाटन वक्तव्य का पाठ किया। डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र ने लोढ़ा जी की प्रशासकीय दक्षता एवं सारस्वत अवदान का भावपूर्ण स्मरण करते हुए कोलकाता विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग की स्वतंत्र अस्तित्व रचना के उनके प्रयासों की सराहना की। उन्होंने लोढ़ाजी की सुदीर्घ शिष्य परंपरा में आचार्य विष्णुकांत शास्त्री का भी उल्लेख किया। उन्होंने जन्मशताब्दी के आयोजन की परिकल्पना हेतु दोनों पुस्तकालयों की प्रशंसा की।

अपने अध्यक्षीय भाषण में विश्वभारती शांतिनिकेतन के हिन्दी विभाग के पूर्व आचार्य डॉ. रामेश्वर मिश्र ने कहा कि प्रो. लोढ़ा व्यक्ति नहीं, संस्था थे। उन्होंने वैज्ञानिकता का आधार लेकर कलकत्ता वि.वि.के हिन्दी विभाग का बहुविध उन्नयन किया। उनके रचनात्मक व्यक्तित्व से प्रेरित एवं प्रभावित होकर महानगर के साहित्यकार, पत्रकार, संस्कृतिधर्मी तथा व्यापारीवर्ग के लोग हिन्दी-हित में प्रवृत्त हुए।

बंगवासी कालेज की पूर्व प्राध्यापिका तथा लोढ़ाजी की शिष्या डॉ. वसुमति डागा ने कहा कि प्रो. लोढ़ा का सम्मान हिंदी की विद्वत् परम्परा का सम्मान है। आत्मीयता के साथ कठोर अनुशासन उनके स्वभाव का अंग था। ‘छपते छपते’ हिन्दी दैनिक के सम्पादक विश्वंभर नेवर ने कहा कि प्रो. लोढ़ा के अतुलनीय अवदान पर हमें गर्व है। वे हिंदी के हिमालय थे, सामाजिक तथा साहित्यिक स्तर पर वे अभिनंदनीय व्यक्ति थे।

कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ प्रेमशंकर त्रिपाठी ने प्रो. लोढा के कृती व्यक्तित्व की चर्चा की एवं वर्षव्यापी कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत की। जालान पुस्तकालय के अध्यक्ष भरत कुमार जालान ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

कार्यक्रम के प्रारंभ में लोकप्रिय गायक ओमप्रकाश मिश्र ने सरस्वती वंदना एवं प्रसाद के चर्चित गीत ‘तुमुल कोलाहल कलह में..’ की सस्वर प्रस्तुति की। डॉ ऋषिकेश राय, प्रो. दिव्या प्रसाद, अजयेन्द्र नाथ त्रिवेदी एवं सागरमल गुप्त ने अतिथियों का स्वागत किया।

समारोह में कुमारसभा पुस्तकालय के मंत्री महावीर बजाज, डॉ. अमरनाथ शर्मा, दुर्गा व्यास, डॉ.तारा दूगड़, डॉ. शकुंतला मिश्र, डॉ.विनोद कुमार, डॉ. रामप्रवेश रजक, बंशीधर शर्मा, अरुण प्रकाश मल्लावत, रविप्रताप सिंह, नवीन कुमार सिंह, डॉ. अभिजीत सिंह, अनिल कुमार, डॉ. कमल कुमार, डॉ. सत्यप्रकाश तिवारी, डॉ सुनीता मंडल, जीवन सिंह, रमाकांत सिन्हा, अमरनाथ सिंह, राजेन्द्र क़ानूनगो, विजय झुनझुनवाला, रामचंद्र अग्रवाल, ज्ञान प्रकाश पाण्डेय, डॉ किरण सिपानी, गायत्री बजाज, भोला सोनकर, राजेश शुक्ल, नवल केडिया, भागीरथ सारस्वत, सत्यप्रकाश राय, श्रीमोहन तिवारी, विवेक तिवारी जैसे प्रभृति साहित्य प्रेमियों से सभागार भरा था।

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