काशीपुर उदयनबाटी में शुरु हुआ कल्पतरु उत्सव, दर्शनार्थियों के प्रवेश पर पाबंदी

कोलकाता : स्वामी रामकृष्ण परमहंस के महाप्रयाण की स्मृति में काशीपुर उद्यानबाटी में तीन दिवसीय कल्पतरु उत्सव की शुरुआत शनिवार सुबह से हो गई है। हालांकि इस बार भी यहां दर्शनार्थियों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया है। महामारी के मद्देनजर इस बार पूरे सुरक्षा प्रोटोकॉल के साथ उत्सव का आयोजन हुआ है।

रामकृष्ण मिशन की ओर से उदयनबाटी में सुबह से ही पूजा अर्चना और अनुष्ठान की शुरुआत हो गई है जो सोमवार तक चलेगी। बताया गया है कि दर्शकों का प्रवेश भले ही प्रतिबंधित है लेकिन पूरे उत्सव को ऑनलाइन टेलीकास्ट किया जा रहा है ताकि दर्शनार्थी इसे आसानी से देख सकें। पूरे रीति रिवाज से तीनों दिनों तक उत्सव का आयोजन होगा। पिछले साल भी महामारी की वजह से ऐम श्रद्धालुओं को इस उत्सव में शिरकत करने का मौका महीं मिल पाया था।

क्यों मनाया जाता है कल्पतरु उत्सव

महान संत श्री रामकृष्ण परमहंस अपने जीवन के अंतिम दिनों में काफी अस्वस्थ हो गए थे और काशीपुर के उदयनबाटी में ही रहते थे। इस बीच एक जनवरी 1886 को उनके शिष्य गिरीश घोष, सुरेंद्रनाथ, राम चंद्र दास सहित कई अन्य ने देखा कि रामकृष्ण परमहंस अचानक दूसरे तल्ले से उतरकर बरामदे से होते हुए उनकी ओर आ रहे थे। अति अस्वस्थता के बावजूद जब उन्होंने गुरु को इस तरह से अपनी और आते देखा तो बेहद खुश हो गए थे। रामकृष्ण परमहंस उन तक पहुंचे भी और सभी लोगों ने उन्हें स्पर्श किया। रामकृष्ण परमहंस ने भी सभी को आशीष भी दिया।

भक्तों का दावा था कि उस दिन उनके चेहरे में भगवान का रूप दिखा था। रामकृष्ण परमहंस ही अपने समय के भगवत पुरुष थे इसे लेकर शिष्यों के अंदर व्याप्त संदेह को उस दिन उन्होंने दूर कर दिया था। इसके बाद आम के पेड़ के पास बैठे थे और सभी को आशीर्वाद देते हुए कहा था कि आप सभी के जीवन में सत्यता आए। भक्तों की लंबे समय से यह इच्छा थी कि वह अपने गुरु में ईश्वर का दर्शन करें और उस दिन आम के पेड़ के नीचे बैठकर स्वामी रामकृष्ण परमहंस में सभी की इच्छाएं पूरी की थी इसीलिए उस दिन के बाद से भक्तों ने कल्पतरु उत्सव मनाना शुरू कर दिया था। तब से लेकर हर साल इसे मनाया जाता है।

राज्य भर में स्थित रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और मां शारदा से जुड़े तीर्थ पर इस उत्सव का आयोजन किया जाता है। यहां बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालु पूजा पाठ कर मनोकामना पूर्ति की आकांक्षा करते हैं। हालांकि महामारी की वजह से पिछले दो सालों से भक्तों के प्रवेश पर प्रतिबंध रह रहा है।

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