शिक्षा के साथ धर्म को न मिलाएं : अग्निमित्रा पाल

कोलकाता : कर्नाटक के स्कूल में ड्रेस कोड को लेकर चल रहे विवाद के बीच भारतीय जनता पार्टी की पश्चिम बंगाल प्रदेश की महासचिव तथा विधायक अग्निमित्रा पाल का मंगलवार को एक बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने कहा कि हमें शिक्षण संस्थानों ड्रेस कोड का सम्मान करना चाहिए। जिस प्रकार सेना में एक मुस्लिम महिला शत्रु के साथ लड़ाई करते समय हिजाब नहीं पहन सकती, जैसे एक मुस्लिम महिला डॉक्टर मरीज का परीक्षण करते समय हिजाब नहीं पहन सकती, ठीक उसी प्रकार शिक्षण संस्थानों के ड्रेस कोड का भी सम्मान किया जाना चाहिए, शिक्षा के साथ धर्म को नहीं मिलाया जाना चाहिए।

अग्निमित्रा ने आगे कहा कि मैं भी एक समय छात्रा थी। कॉलेज में लड़कियां साड़ी पहन कर आती थीं, उस समय कॉलेज का यही अलिखित नियम था। एक बार कॉलेज में एक लड़की सलवार कमीज पहन कर आ गई थी। इसको लेकर काफी विवाद हुआ था लेकिन कॉलेज के प्रिंसिपल ने उसे सलवार कमीज पहनकर कॉलेज आने की स्वीकृति नहीं दी। उस समय भी बहुत कुछ लिखा गया था। मैं नहीं कहती कि सलवार कमीज खराब कपड़ा है, उस समय कॉलेज में ड्रेस कोड भी नहीं था। फिर भी कॉलेज के प्रिंसिपल शुभंकर बाबू ने उसे रोकने की कोशिश की थी। बाद में शुभंकर बाबू को एक विश्वविद्यालय का उपाचार्य भी बनाया गया।

अभी भी कोलकाता में बहुत सारे क्लब हैं जिनका एक विशेष ड्रेस कोड है। ऐसी अनेकों घटनाएं घटी हैं कि धोती और पंजाबी पहनकर इन क्लबों में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। इन संस्थानों का पक्ष बिल्कुल सहज था कि जो हमारे संस्थान से जुड़ेगा उसको यहां का नियम मानना होगा। यदि किसी को संस्थान का नियम मानने में समस्या है तो वह संस्थान से अलग हो जाए। विद्यालय तो पढ़ने-लिखने का स्थान है। धर्म पालन करने का अधिकार सबका है, लेकिन कहां? स्कूल में स्कूल के बाहर। माता-पिता स्कूल में अपने बच्चों को उपयुक्त शिक्षा के लिए भेजते हैं। इस प्रसंग में असम में मदरसों को लेकर अदालत ने जो फैसला दिया है उसको भी देखा जा सकता है। वहां मदरसों को सरकारी स्कूल में परिवर्तित किया जाएगा। धार्मिक शिक्षा के बदले वहां वैज्ञानिक शिक्षा दी जाएगी। कर्नाटक की घटना इस समय चर्चा का केंद्र बनी हुई है।

अभिभावकों को भी देखना होगा धार्मिक शिक्षा के चक्कर में कहीं छात्राएं मौलिक शिक्षा से दूर तो नहीं होती जा रही हैं। सोचने की जरूरत है, आशा करती हूं कि अदालत के निर्णय के बाद कर्नाटक में पढ़ाई-लिखाई अपनी स्वाभाविक गति से आगे बढ़ेगी।

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