भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का ऐसा क्रांतिकारी, जिसने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का शंखनाद किया। वासुदेव बलवंत फड़के ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह को संगठित रूप देने वाले पहले क्रांतिकारी माने जाते हैं। ब्रिटिश काल में गुलामी में जकड़े भारतीय समाज को देखकर फड़के का मन विचलित हो उठा और उनका दृढ़ विश्वास था कि स्वराज के बगैर परिवर्तन संभव नहीं है।
4 नवंबर 1845 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के शिरढोेणे में पैदा हुए वासुदेव बलवंत फड़के ने 1857 की क्रांति की विफलता के बाद भारतीयों में संघर्ष की चिंगारी जलाई। उन्होंने भील, डांगर, कोली, रामोशी जैसे समाज के हाशिए पर खड़ी जातियों के प्रतिबद्ध युवाओं को संगठित कर अंग्रेजों के खिलाफ आर्मी तैयार की। उनका विचार था कि अंग्रेजों ने जितनी बीमारियां अबतक देश को दी हैं, उन सभी बीमारियों का एक ही इलाज है- स्वराज।
वासुदेव बलवंत फड़के मानते थे कि लहू बहाए बिना क्रांति नहीं हो सकती। साथ ही अंग्रेजों में भी जान का खौफ पैदा किए बिना स्वतंत्रता नहीं मिल सकती। उनकी आर्मी सरकारी महकमों और सरकार के कलेक्शन सेंटर्स पर हमले कर पैसों को लूटती और फड़के संगठन के जरूरत के धन रखकर बाकी गरीबों में बांट देते। लूटे गए हथियार उनकी आर्मी के काम आते। इसलिए अंग्रेजी सरकार ने उन्हें लुटेरा घोषित किया तो गांव वालों ने देवता।
अंग्रेजों की सरकार फड़के की गतिविधियों से बेहद परेशान हो गई। उन्हें पकड़ने की मुहिम शुरू हुई। इस दौरान उनके कई साथ अंग्रेजों के हाथों मारे भी गए। 20 जुलाई 1879 को पंढरपुर के रास्ते में एक देवी मंदिर में फड़के के रुकने की सूचना किसी ने अंग्रेजी हुकूमत को दे दी और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें आजीवन कारावास की सजा हुई और अदन की जेल में भेज दिया गया। जेल में उन्होंने भूख हड़ताल शुरू कर दी। भूख हड़ताल के दौरान उनकी शारीरिक हालत लगातार बिगड़ती गई और 17 फरवरी 1883 को इस महान क्रांतिकारी ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
अन्य अहम घटनाएंः
1670ः छत्रपति शिवाजी ने मुगलों को हराकर सिंहगढ़ किले पर परचम लहराया।
1863ः जिनेवा में अंतरराष्ट्रीय रेडक्रॉस की स्थापना।
1915ः गांधीजी ने पहली बार शांति निकेतन की यात्रा की।
2004ः फूलन देवी की हत्या का मुख्य आरोपित शमशेर सिंह राणा तिहाड़ जेल से फरार।
2005ः बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने भारतीय नागरिकता का अनुरोध किया।