इतिहास के पन्नों में : 21 फरवरी – ‘आमार भायेर रोक्ते रांगानो एकुशे फरवरी’

बांग्ला में लिखे गीत की इस पंक्ति का अर्थ है- 21 फरवरी मेरे भाइयों के खून से सना है। इस गीत की पृष्ठभूमि यह है कि 21 फरवरी 1952 को सर्वदलीय केंद्रीय भाषा संग्राम समिति ने बांग्ला को पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) की आधिकारिक भाषा बनाने की मांग को लेकर ढाका विश्वविद्यालय में आंदोलन शुरू किया। आंदोलनकारी छात्रों को कुचलने के लिए पुलिस ने गोलियां चलाई, जिसमें पांच छात्रों की मौत हो गई। इन शहीद छात्रों की याद में लिखा गया यह शोकगीत आगे चलकर आंदोलनकारियों का गीत बन गया। भाषा का यह विवाद पाकिस्तान के बंटवारे और बांग्लादेश के निर्माण की वजह बना। पाकिस्तान मजहब के नाम पर बना तो उससे टूटकर बांग्लादेश का निर्माण भाषा के नाम पर हुआ।

दरअसल यह विवाद पाकिस्तान के निर्माण के साथ ही शुरू हो गया था। पाकिस्तान के दो प्रमुख क्षेत्र पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान थे जिसमें पूर्वी पाकिस्तान में 56 फीसदी आबादी रहती थी जो बांग्ला भाषी थी। जबकि पश्चिमी पाकिस्तान में पंजाबी, सिंधी, बलूची, पश्तो और अन्य दूसरी भाषा व बोलियों वाले लोग थे। भारत से पलायन कर पाकिस्तान पहुंचे मुसलमान आबादी उर्दू बोलने वाली थी जिनका देश की आबादी में हिस्सा केवल तीन फीसदी का था। इसके बावजूद सत्ता में इसी तबके का दबदबा था और उर्दू का वर्चस्व।

नवंबर 1947 में कराची में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्धारण को हुई बैठक में उर्दू और अंग्रेजी को पाकिस्तान की सरकारी भाषा बनाने का प्रस्ताव आसानी से पास हो गया। साथ ही पाकिस्तान की लोकसेवा आयोग ने बाग्ला विषय को सूची से हटा दिया। पाकिस्तान की सरकार ने मुद्रा और सरकारी स्टाम्प से भी बांग्ला को हटा दिया। इसके खिलाफ 8 दिसंबर 1947 को ढाका विश्वविद्यालय से आंदोलनों का सिलसिला शुरू हुआ।

21 मार्च 1948 को मोहम्मद अली जिन्ना ने इस असंतोष को उस समय और हवा दे दी जब ढाका के रेसकोर्स मार्ग मैदान में उन्होंने साफ-साफ लफ्जों में बांग्ला भाषा आंदोलन को विदेशी षड्यंत्र बताते हुए सरकारी भाषा के लिए उर्दू की हिमायत की। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग भी उर्दू के अलावा किसी अन्य भाषा को पाकिस्तान की सरकारी भाषा बनाना चाहते हैं वे पाकिस्तान के दुश्मन हैं।

जिसके बाद भाषा का यह आंदोलन तेजी से सुलगता हुआ 21 फरवरी 1952 तक पहुंच गया, जब ढाका विश्वविद्यालय में आंदोलनकारी छात्रों पर पुलिस ने गोलियां चलाई और पांच छात्रों की मौत हो गई।

बांग्लादेश के इस भाषा आंदोलन को अलग-अलग तरीकों से याद किया जाता है। बांग्लादेश की मांग पर 1999 में यूनेस्को ने इसे अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस आयोजित किया और इसे विश्व भर में मनाया जाता है। ढाका की शहीद मीनार, ढाका विश्वविद्यालय का स्मारक छात्रों की इस शहादत की याद दिलाता है।

अन्य अहम घटनाएंः

1894ः प्रसिद्ध वैज्ञानिक शांतिस्वरूप भटनागर का जन्म।

1896ः महान कवि एवं लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म।

1991ः फिल्म अभिनेत्री नूतन का निधन।

1998ः सुप्रसिद्ध चरित्र अभिनेता ओमप्रकाश का निधन।

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