उस समय आंध्र प्रदेश था नहीं लेकिन लाखों तेलुगू भाषियों की ख्वाहिश जरूर थी। यह मद्रास राज्य का हिस्सा था, जहां तेलुगु भाषियों की प्रभावी संख्या थी। देश की आजादी के बाद भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की मांग को लेकर उठ रही आवाजों में सबसे तीव्रतम तेलुगु भाषियों के लिए अलग राज्य की मांग ही थी।
धर्म के नाम पर देश के बंटवारे का गहरा घाव अभी ताजा ही था। दिल्ली का केंद्रीय नेतृत्व इसी वजह से भाषा के आधार पर कोई जोखिम लेने की बजाय फूंक-फूंककर कदम रख रहा था। तेलुगू भाषियों की इस मांग को खास तवज्जो नहीं मिली।
हालांकि 1950 आते-आते मांग जोर पकड़ने लगी। स्वामी सीताराम आंध्र की मांग को लेकर अनशन पर बैठे लेकिन आचार्य विनोबा भावे के आग्रह पर उन्होंने अनशन खत्म कर दिया। हालांकि अलग राज्य की मांग को लेकर जन जागरुकता का अभियान जारी रखा। इसी का नतीजा था कि 1952 के पहले आम चुनाव में कांग्रेस पूरे देश में जीती मगर मद्रास में पार्टी को हार मिली। चुनाव नतीजों के जरिये तेलुगू भाषियों ने दिल्ली को साफ संदेश दे दिया।
एकबार फिर अलग राज्य की मांग को लेकर आमरण अनशन शुरू हुआ। इसबार स्वामी सीताराम की जगह महात्मा गांधी के परम शिष्य़ श्रीरामुलु अनशन पर बैठे। श्रीरामुलु 1946 में भी सभी जातियों के लिए तमाम मंदिरों में प्रवेश की मांग को लेकर अनशन किया था और महात्मा गांधी के आग्रह पर उस समय उन्होंने अपना अनशन खत्म भी किया था। उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और इन आंदोलनो में जेल की सजा काटी थी।
हालांकि अब स्थितियां दूसरी थी। 19 अक्टूबर 1952 को श्रीरामुलु ने अलग आंध्र की मांग को लेकर आमरण अनशन शुरू किया। इस दौरान जनता सड़कों पर उतरने लगी। ट्रेनें रोकी जानी लगी, बसों की तोड़फोड़ की जा रही थी। तो दिल्ली में तय हुआ कि पोट्टि श्रीरामुलु को बातचीत के लिए दिल्ली बुलाया जाए। लेकिन इस फैसले तक पहुंचते-पहुंचते दिल्ली को काफी देर हो चुकी थी। 15 दिसंबर को अनशन के 58वें दिन पोट्टि श्रीरामुलु ने प्राण त्याग दिए।
इसके बाद तो जैसे जलजला आ गया। जनता का गुस्सा ऐसा भड़का कि हर तरफ विरोध की आग जलने लगी। कुछ जगहों पर पुलिस फायरिंग भी करनी पड़ी लेकिन हालात पूरी तरह से बेकाबू होने पर आखिरकार प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को उनकी मौत के चार दिनों बाद 19 दिसंबर को आंध्र की मांग को मंजूरी दे दी। उसकी नई राजधानी बनी कुरनूल, जिसके उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू मुख्य अतिथि बनकर शामिल हुए।
अन्य अहम घटनाएंः
1693ः मालवा के प्रथम मराठा सूबेदार मल्हारराव होल्कर का जन्म।
1907ः सुप्रसिद्ध साहित्यकार अम्बिका प्रसाद दिव्य का जन्म।
1916ः जाने-माने चरित्र अभिनेता दयाकिशन सप्रू का जन्म।
1947ः हिंदी कवि, निबंधकार और संपादक अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध का निधन।
1958ः भारत के पहले रक्षा प्रमुख जनरल बिपिन सिंह रावत का जन्म।