विश्व कविता दिवस पर खण्ड काव्य ‘द्रौपदी’ का विमोचन

कोलकाता : विश्व कविता दिवस के मौके पर सोमवार की शाम वाणी प्रकाशन एवं पुकार संस्था के संयुक्त तत्वावधान में प्रतिष्ठित कवि-कथाकार, लोकगायक एवं राज्य पुलिस के महानिदेशक मृत्युंजय कुमार सिंह द्वारा रचित खंड काव्य ‘द्रौपदी’ का विमोचन एवं परिचर्चा सत्र का आयोजन नंदन -2 सभागार में किया गया। समारोह की अध्यक्षता हिंदी के वरिष्ठ कवि-आलोचक अरुण कमल ने की। पश्चिम बंग कविता अकादमी के अध्यक्ष एवं बांग्ला के सुप्रतिष्ठित कवि सुबोध सरकार और कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. राजश्री शुक्ला ने पुस्तक पर अपनी बात रखी एवं किताब के विविध पहलुओं पर चर्चा की ।

भारतीय मिथक कथाओं में द्रौपदी सबसे चर्चित पात्रों में शामिल रही हैं। भारतीय समाजशास्त्रियों एवं साहित्यकारों के लिए भी द्रौपदी हमेशा से चर्चा का विषय रही हैं। पितृसत्तात्मक समाज की रुढ़िवादी मान्यताओं, दाव-पेंच, अपमान एवं छल प्रपंच का शिकार बनकर भी वह एक मजबूत विदुषी के रूप में हमारे समक्ष दृष्टिगोचर होती हैं और स्त्री अस्मिता से जुड़े प्रश्न एक के बाद एक उठाती रहती हैं। उनके द्वारा उठाए गए प्रश्न आज भी भारतीय समाज में प्रासंगिक हैं। द्रौपदी के जीवन से जुड़े ऐसे ही प्रसंगों को केंद्र में रखकर लिखा गया है ‘द्रौपदी’ नामक खंड काव्य।

सुबोध सरकार ने कवि को बधाई देते हुए अपने वक्तव्य में इस खंड काव्य पर विचार रखे। उन्होंने विश्व कविता दिवस पर आयोजित इस समारोह को भाषाओं के बीच सेतु की तरह बताया। उन्होंने कहा कि गोली पर कविता हमेशा भारी पड़ेगी। लेखकीय वक्तव्य में मृत्युंजय कुमार सिंह ने किताब के सूत्रों और प्रेरणाओं पर बात की। उन्होंने कहा कि मैंने अपने आसपास कई द्रौपदियां देखी हैं, इनका दर्द हमेशा मेरे साथ रहा है। इन सबका जीवन इस किताब के प्रेरणास्रोत की तरह रहा है। उन्होंने इस किताब से कुछ हिस्सों का गाकर पाठ किया। परिचर्चा के दौरान राजश्री शुक्ला ने किताब पर अपनी बात रखते हुए कहा कि हमारी पौराणिक कथाएँ स्त्रियों के प्रति निर्दयी रही हैं। वे स्त्रियों के प्रति हो रहे अन्याय के प्रति तरह-तरह के तर्क गढ़ती हैं। हमारी पौराणिक कथाओं में द्रौपदी के प्रति जो सहानुभूति मिलनी चाहिए वह कभी नहीं मिली। द्रौपदी का चरित्र नश्वर नहीं है क्योंकि उसमें प्रश्न ही प्रश्न है। आज के युग में भी द्रौपदी विभिन्न रूपों में लगातार प्रश्न उठाती रहती हैं। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में अरुण कमल ने कहा कि यूनेस्को को कलकत्ता को कविता का शहर घोषित करना चाहिए। इस शहर में कविता की एक महान परंपरा है। कवि ने इस पुस्तक के पूर्व वाक्य को बहुत ही शोध के साथ लिखा है। ये किताब द्रौपदी के माध्यम से ढेर सारे सवाल हमारे सामने खड़े करती है।

कार्यक्रम के दौरान नीलांबर कोलकाता की टीम द्वारा इस खंड-काव्य के छंदों पर आधारित वीडियो कोलाज प्रस्तुत किया गया जिसमें हिस्सा लेने वाले कलाकारों में शामिल थे विमलेश त्रिपाठी, पूनम सिंह, ममता पांडेय, विशाल पांडेय, काजल साव और हंसराज। इस कोलाज का निर्देशन और संपादन ऋतेश कुमार ने, ध्वनि संयोजन मनोज झा ने और कैमरा संयोजन विशाल पांडेय और प्रदीप तिवारी ने किया। इसके अलावा इस खंड काव्य के चुनिंदा अंशों पर आधारित वीडियो मोंताज की प्रस्तुति की गई, जिसमें काव्य आवृत्ति प्रतिष्ठित रंगकर्मी और अदाकारा कल्पना झा ने किया एवं वीडियो संपादन मनोज झा ने किया।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए पुकार संस्था की अध्यक्ष स्वाति गौतम ने इस खंड काव्य के कई कविता खंडों को रेखांकित किया। धन्यवाद ज्ञापन नीलांबर कोलकाता के अध्यक्ष एवं सुपरिचित कवि यतीश कुमार ने किया। समारोह में बड़ी संख्या में शहर के गण्यमान्य एवं साहित्य प्रेमियों की मौजूदगी रही।

यह जानकारी नीलांबर कोलकाता के उपसचिव एवं मीडिया प्रभारी आनंद गुप्ता के माध्यम से मिली है।

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