आचार्य महाश्रमण ने अहिंसा पदयात्रा से ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के विचार को दिया विस्तार : प्रधानमंत्री मोदी

नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जैन धर्म के श्वेताम्बर तेरापंथ आचार्य महाश्रमणजी और उनके सभी शिष्यों को 18 हजार किलोमीटर की ऐतिहासिक अहिंसा यात्रा पूरी करने पर बधाई देते हुए कहा कि इसके जरिए आचार्य श्री ने ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के भारतीय विचार को विस्तार दिया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को अहिंसा यात्रा संपूर्णता समारोह कार्यक्रम में दिए वीडियो संदेश में कहा कि आचार्य महाश्रमण ने 7 वर्षों में 18 हजार किलोमीटर की पदयात्रा पूरी की है। ये पदयात्रा दुनिया के तीन देशों की यात्रा थी। इस पदयात्रा ने देश के 20 राज्यों को एक विचार और प्रेरणा से जोड़ा। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका मानना है कि आचार्य ने ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के मंत्र को आध्यात्मिक संकल्प के रूप में प्रसारित करने का काम किया है।

उन्होंने कहा कि भारत हजारों वर्षों से संतों, ऋषियों, मुनियों और आचार्यों की महान परंपरा की धरती रहा है। काल के थपेड़ों ने कैसी भी चुनौतियां पेश की हों, लेकिन ये परंपरा वैसे ही चलती रही। हमारे यहां आचार्य वही बना है, जिसने चरैवेति-चरैवेति के मंत्र को जिया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि श्वेताम्बर तेरापंथ ने चरैवेति-चरैवेति की, सतत गतिशीलता की इस महान परंपरा को नई ऊंचाई दी है।

प्रधानमंत्री ने आचार्य तुलसी, महाप्रज्ञ और महाश्रमण से अपनी निकटता का जिक्र करते हुए बताया कि वह तेरापंथ के अनेक आयोजनों में शामिल रहे हैं। इस दौरान अपने एक भाषण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इसी प्रेम के कारण उन्होंने आचार्यों के बीच कहा था कि- ये तेरा पंथ है, ये मेरा पंथ है।

2014 में दिल्ली के लाल किले से अहिंसा पद यात्रा की शुरुआत को संयोग बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उस वर्ष देश ने भी नये भारत की यात्रा शुरू की थी। प्रधानमंत्री ने आचार्य से अपनी यात्रा के दौरान बदलते भारत के अनुभवों को साझा करने की अपील की।

प्रधानमंत्री ने आजादी के अमृत महोत्सव का उल्लेख करते हुए कहा कि आज देश भी स्व से ऊपर उठकर समाज और राष्ट्र के लिए कर्तव्यों का आह्वान कर रहा है। आज देश ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास’ के संकल्प पर आगे बढ़ रहा है। सरकारें ही सब कुछ करेंगी, सत्ता ही सब कुछ चलाएगी, ये कभी भी भारत का भाव नहीं रहा है। ये भारत की प्रकृति ही नहीं रही है। हमारे यहां राज सत्ता, समाज सत्ता, आध्यात्म सत्ता, सबकी बराबर भूमिका रही है। हमारे यहां कर्तव्य ही धर्म रहा है। कर्तव्य पथ पर चलते हुए आज देश भी अपने संकल्पों में यही भाव दोहरा रहा है।

उन्होंने इस बात पर खुशी जाहिर की कि आज एक नए भारत के सपने के साथ भारत सामूहिकता की शक्ति से आगे बढ़ रहा है। आज हमारी आध्यात्मिक शक्तियां, आचार्य, संत सब मिलकर भारत के भविष्य को दिशा दे रहे हैं।

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