मोतिहारी/कोलकाता : लोक आस्था एवं प्रकृति रक्षा का चार दिवसीय महापर्व चैती छठ मंगलवार को नहाय-खाय के साथ आरंभ हो गया। चैत्र नवरात्र के तृतीया के दिन बड़ी संख्या में छठव्रती महिलाओं ने पवित्र नदियों एवं सरोवर में स्नान कर सात्विक तरीके से बने भोजन को ग्रहण किया।
व्रती बुधवार को खरना करेंगी और गुरुवार को अस्ताचलगामी व शुक्रवार की सुबह उदीयमान भगवान सूर्य को अर्घ्य देंगी। गोखुला निवासी आचार्य धुरंधर तिवारी ने बताया कि स्कन्दपुराण मे वर्णित सूर्यषष्ठी (छठ) पूजा का विशेष महत्व है। उन्होंने बताया भगवान सूर्य से निरोग काया के साथ समस्त प्रकृति के रक्षा की कामना इस व्रत में की जाती है। उन्होंने बताया कि पुराण में ऐसी मान्यता है कि पंचमी के सायंकाल से ही घर में छठी माता का आगमन हो जाता है।
उल्लेखनीय है कि छठ पूजा में मुख्य रूप से प्रकृति प्रदत्त समाग्री को ही प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है जैसे ईंख-अदरख, मूली, कच्ची हल्दी, अरवी, सुथनी, बोड़ी, गागल, नीम्बू, पान, सुपारी, लौंग, इलायची के साथ केला नारियल सिंघाड़ा एवं अन्य ऋतुफल आदि शामिल होते हैं। साथ ही इस व्रत में आटे और गुड़ और शुद्ध देशी घी के मिश्रण से तैयार ठेकुआ चढ़ाने की विशेष परंपरा है। इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस पर्व में डूबते हुए सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है।