कोलकाता : औपनिवेशिक काल से ही पूरे पूर्वोत्तर के साथ देश के अन्य राज्यों में इलाज के श्रेष्ठ केंद्रों में रहे पश्चिम बंगाल की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं अब सुधरने के बजाय धीरे-धीरे बीमार होती जा रही हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पिछले 13 सालों से राज्य की स्वास्थ्य मंत्रालय का प्रभार देख रही हैं। वह स्वास्थ्य साथी समेत कई अन्य योजनाओं को लेकर स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार का दावा करती हैं लेकिन जमीनी हकीकत इसके विपरीत है।
राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं और सुविधाओं की एक बानगी अभी हाल ही में देखने को मिली। बीरभूम जिले में आगजनी की लोमहर्षक घटना के पीड़ितों को जिस जिला अस्पताल में भर्ती किया गया था वहां अस्पताल में बर्न वार्ड ही नहीं था। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का इलाज एकमात्र राजधानी कोलकाता के राजकीय एनआरएस अस्पताल में ही संभव है। राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर नेशनल मेडिकोज के संयोजक डॉ. प्रभात सिंह ने विशेष बातचीत की। डॉ. सिंह ने बताया कि पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य व्यवस्था में जिस तरह से सुधार होना चाहिए था, वह फिलहाल नहीं दिख रहा है। आंकड़ों का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के अनुसार राज्य के कुल बजट का कम से कम 8 फ़ीसदी हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं में खर्च होना चाहिए लेकिन पश्चिम बंगाल में केवल 4.5 फ़ीसदी हिस्सा ही खर्च किया जा रहा है।
पश्चिम बंगाल सरकार के स्वास्थ्य विभाग की वेबसाइट पर अपडेटेड आंकड़े के मुताबिक पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य सेवा में राज्य और संघीय सरकारों द्वारा संचालित एक सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली है। 2021 तक राज्य का कुल सार्वजनिक स्वास्थ्य बजट 16,368 करोड़ है, जिसमें से 10,922 करोड़ सार्वजनिक अस्पतालों के लिए रखा गया था, दो हजार करोड़ सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम के लिए और 5,246 करोड़ प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जाना है। राज्य सरकार के वर्तमान और सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए स्वास्थ्य बीमा कवरेज पर आधिकारिक स्वास्थ्य बजट के अतिरिक्त एक हजार करोड़ खर्च किए जाने थे। स्वास्थ्य सेवा राज्य के पूरे बजट का लगभग 4.5 फीसदी है, जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के अनुरूप कम से कम 8 फीसदी तक बढ़ाया जाना चाहिए।
इस संबंध में राज्य स्वास्थ्य विभाग के निदेशक डॉ. अजय चक्रवर्ती ने बताया कि पश्चिम बंगाल सरकार स्वास्थ्य सेवाओं में लगातार सुधार के लिए काम कर रही है। अस्पतालों में बेडों की संख्या में बढ़ोतरी से लेकर अत्याधुनिक चिकित्सकीय सुविधाएं तक जोड़ी जा रह रही हैं। उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि राज्य में मेडिकल कॉलेजों की संख्या नौ है, जिनमें 11 हजार 130 बेड उपलब्ध हैं। इसी तरह से जिला अस्पतालों की संख्या 15 है, जिनमें 7,402 बेड उपलब्ध हैं। उन्होंने बताया कि पूरे राज्य में अस्पतालों की संख्या प्राइवेट और सरकारी मिला कर चार हजार से अधिक है, जिसमें कुल बेड की संख्या करीब एक लाख है। उन्होंने दावा किया कि पश्चिम बंगाल में कुल आबादी का 90 फ़ीसदी से अधिक लोग सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रमों के तहत पंजीकृत हैं। इनमें कंपनियों से मिलने वाले बीमा से लेकर राज्य सरकार की स्वास्थ्य साथी परियोजना तक का लाभ लोगों को दिया जा रहा है।
हालांकि स्वास्थ्य विभाग के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर स्वीकार किया है कि बंगाल के जिलों में जो राजकीय अस्पताल हैं, उनमें खस्ताहाली जस की तस बरकरार है। सबसे अधिक दवाइयों की कमी है और दूसरी समस्या है चिकित्सकों की उपलब्धता। मूल रूप से पश्चिम बंगाल के ब्लॉक प्राथमिक केंद्रों पर चिकित्सक नियुक्त ही नहीं हैं। अगर हैं भी तो एक डॉक्टर पर कई सारी जिम्मेदारियां दी गई हैं।