कोलकाता : पश्चिम बंगाल में बांग्ला नववर्ष 1429 की शुरुआत के मौके पर शुक्रवार को राजधानी कोलकाता समेत राज्य के अन्य हिस्सों में स्थित माँ काली के शक्तिपीठों में पूजा करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी है। कोलकाता के कालीघाट, दक्षिणेश्वर के विख्यात काली मंदिरों, बीरभूम के तारापीठ और अन्य मंदिरों में सुबह पांच बजे से ही भक्तों का आगमन शुरू हो गया था। दक्षिणेश्वर मंदिर का कपाट सुबह 5:30 बजे खोला गया जिसके बाद सुबह 10 बजे तक माँ काली की पूजा के लिए लोगों की लंबी कतारें लगी रहीं। इसमें बड़ी संख्या में महिला, पुरुष, युवा, बुजुर्ग हर आयु वर्ग के लोग शामिल थे।
इसी तरह से कोलकाता के कालीघाट में भी पूजा करने वालों की भारी भीड़ थी। पुरुष धोती कुर्ता और महिलाएं लाल धारी वाली चमकती सफेद साड़ी जैसी पारंपरिक बंगाली परिधान पहनकर मंदिरों में पूजा-अर्चना करने के लिए पहुंची थीं। बड़ी संख्या में बच्चे घर वालों के साथ पहुंचे थे। बैशाख महीने की शुरुआत के साथ ही बांग्ला भाषी लोगों के नए साल की शुरुआत भी होती है।
इस मौके पर नए-नए कपड़े पहन कर लोग सबसे पहले पूजा अर्चना कर सुख, शांति, समृद्धि का आशीर्वाद भगवान से लेते हैं जिसके बाद एक दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएं देते हैं। इस दिन प्रत्येक बांग्ला भाषी के घर में मीठे पकवान बनाए जाते हैं और आस पड़ोस के लोगों को भी खिलाया जाता है। कारोबारी अपने-अपने पुराने बही खाते पूरा कर नए बही खाते की शुरुआत पूजा-पाठ के बाद करते हैं। इसलिए सुबह से ही पुरोहित भी प्रत्येक क्षेत्र में शंख और घंटी लेकर पूजा कराते हुए नजर आए हैं। इस मौके पर लोग अपने-अपने रिश्तेदारों के घर भी शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करने के लिए पहुंचे हैं।
मुगल शासन से भी है संबंध
इस दिन का मुगल शासन ने भी संबंध है। इतिहास में कहा गया है कि पोइला बोइसाख का अवसर और इससे जुड़े समारोह मुग़ल बादशाह अकबर के शासनकाल से शुरू हुए थे। कहा जाता है कि मुगल सम्राटों के शासनकाल के दौरान, हिजरी कैलेंडर का पालन करके किसानों से कृषि कर एकत्र किए गए थे। हालांकि, यह हिजरी कैलेंडर एक विशुद्ध रूप से चंद्र कैलेंडर है और यह फसल के साथ मेल नहीं खाता है। इससे किसानों के लिए मुश्किल हो गई क्योंकि उन्हें सीजन से बाहर कर देने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस कठिनाई को हल करने के लिए, मुगल सम्राट अकबर ने कैलेंडर में सुधार का आदेश दिया। नया कृषि वर्ष 1584 में पेश किया गया था और इसे बंगाली वर्ष के रूप में जाना जाने लगा।
परंपरा के अनुसार चैत्र के अंतिम दिन सभी बकाया को पूरा करना अनिवार्य हो गया। अगले दिन, या नए साल के पहले दिन, मकान मालिक अपने किरायेदारों को मिठाई के साथ मुंह मीठा करते थे।