नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव आलापन बनर्जी की याचिका को कैट की प्रिंसिपल बेंच को ट्रांसफर करने के आदेश को निरस्त करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है। जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये आदेश दिया।
कोर्ट ने 29 नवंबर, 2021 को केंद्र सरकार की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि कलकत्ता हाईकोर्ट को ये मामला सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं है। उन्होंने कहा था कि हाईकोर्ट की टिप्पणी राजनीतिक बयानबाजी की तरह है। मेहता ने 15 नवंबर को कोर्ट से कहा था कि हाईकोर्ट का आदेश परेशान करने वाला है। न तो हाईकोर्ट की केंद्र सरकार पर टिप्पणी स्वीकार करने योग्य है और न ही कलकत्ता हाईकोर्ट को उस याचिका पर सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
मेहता ने कहा था कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और कैट की प्रिंसिपल बेंच के खिलाफ टिप्पणी की, हाईकोर्ट जैसी संवैधानिक संस्था अगर ऐसी टिप्पणी करेगी तो वो काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में पिछले साल 28 मई को चक्रवात यास मसले पर बैठक में बंगाल के मुख्य सचिव रहते हुए अलपन के शामिल नहीं होने पर केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी। आलापन को दिल्ली रिपोर्ट करने का आदेश दिया गया था। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन्हें रिलीव करने से इनकार कर दिया था। इस बीच 31 मई, 2021 को आलापन रिटायर हो गए लेकिन केंद्र सरकार ने उनके खिलाफ कार्यवाही जारी रखी ताकि उन्हें रिटायरमेंट से जुड़े लाभ नहीं मिल पाएं।
आलापन ने केंद्र की कार्रवाई को कैट की कलकत्ता बेंच में चुनौती दी लेकिन केंद्र के अनुरोध पर कैट के कलकत्ता बेंच ने 21 अक्टूबर, 2021 को इस मामले को कैट के दिल्ली स्थित प्रिंसिपल बेंच को ट्रांसफर कर दिया और आलापन को निर्देश दिया गया कि वो प्रिंसिपल बेंच के समक्ष 22 अक्टूबर, 2021 को उपस्थित हों। आलापन ने इस फैसले को कलकत्ता हाईकोर्ट में चुनौती दी।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने आलापन की याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार पर कड़ी टिप्पणी की। हाई कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार की ओर से अपनाई गई पूरी प्रक्रिया से पूर्वाग्रह की बू आ रही है। हाईकोर्ट ने इसके साथ ही केस को प्रिंसिपल बेंच को ट्रांसफर करने के आदेश को निरस्त कर दिया था। हाईकोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।