◆ प्रदीप ढेडिया, ट्रस्टी, समर्पण ट्रस्ट
हर बार जब कोई नवजीवन की डोर थामता है, जब कोई माँ अपने शिशु को पहली बार देख मुस्कुराती है, जब किसी परिवार को यह सूचना मिलती है कि उनका प्रियजन अब ख़तरे से बाहर है — उस क्षण एक नाम अदृश्य रूप से गूंजता है: डॉक्टर। ये वही लोग हैं जो निःस्वार्थ भाव से न केवल जीवन बचाते हैं, बल्कि उसे अर्थ और आशा भी देते हैं।
हमारा सौभाग्य है कि भारतभूमि ने अनेक महान चिकित्सकों को जन्म दिया है, जिन्होंने चिकित्सा को सिर्फ़ पेशा नहीं, एक तप, एक साधना बना दिया। उनमें से एक नाम, जिसकी गूंज इतिहास और वर्तमान दोनों में बराबर है — डा. विधानचंद्र राय। एक जुलाई, जो डॉक्टरों के सम्मान में नेशनल डॉक्टर्स डे के रूप में मनाई जाती है, वह डा. राय की जयंती और पुण्यतिथि दोनों का दिन है — एक दुर्लभ संयोग जो उनके जीवन के गूढ़ और विलक्षण अर्थ को और भी गहरा करता है।
डा. राय न केवल एक कुशल चिकित्सक थे, बल्कि स्वतंत्र भारत के निर्माण में एक सशक्त राजनेता, विचारक और समाजसेवी के रूप में भी उन्होंने अतुलनीय योगदान दिया। पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने जिस तरह चिकित्सा, शिक्षा और सामाजिक विकास के क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को मजबूत किया, वह आज भी प्रेरणास्रोत है। वे मानते थे कि डॉक्टर केवल शरीर नहीं, समाज की भी चिकित्सा करते हैं। और यही विचार उन्हें ‘धरती का ईश्वर’ कहे जाने वाले डॉक्टरों का आदर्श बना देता है।
समर्पण ट्रस्ट, जो शिक्षा, धर्म, भाषा, अध्यात्म और सामाजिक-सांस्कृतिक विकास के क्षेत्र में निष्ठा से कार्य कर रही संस्था है, डा. राय के विचारों और आदर्शों को आत्मसात करते हुए प्रत्येक वर्ष नेशनल डॉक्टर्स डे के अवसर पर डॉक्टरों को सम्मानित करती है। यह सम्मान केवल एक समारोह नहीं, बल्कि एक भावनात्मक ऋण की सार्वजनिक स्वीकृति है, जो हम समाज के उन ‘रियल हीरों’ को अर्पित करते हैं, जिनके प्रयासों से अनगिनत परिवारों में जीवन की लौ जलती रहती है।
सोचिए, जब कोई डॉक्टर ऑपरेशन थियेटर में घंटों तक बिना थके किसी अनजान रोगी को जीवनदान देता है, जब वह अपनी नींद, अपने त्योहार, अपने अपनों को छोड़ कर दूसरों के लिए तैयार खड़ा रहता है, तो क्या वह केवल पेशेवर कर्तव्य निभा रहा होता है? नहीं, वह मानवता की सबसे ऊँची मिसाल पेश कर रहा होता है। यही वह क्षण होता है जब डॉक्टरी एक सेवा नहीं, एक संवेदना बन जाती है।
समर्पण ट्रस्ट का यह प्रयास — डॉक्टर्स डे पर डॉक्टरों को सम्मानित करना — एक सामाजिक कृतज्ञता का प्रतीक है। यह हमें यह याद दिलाता है कि जिन हाथों में स्टेथोस्कोप है, वे केवल नब्ज नहीं, जीवन की धड़कन पहचानते हैं। वे हाथ कभी डाँटते नहीं, डरते नहीं, थकते नहीं — वे बस समर्पण करते हैं।
आज जब चिकित्सा व्यवसाय को कई बार आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ता है, तब यह और भी जरूरी हो जाता है कि हम सच्चे चिकित्सकों की पहचान करें, उन्हें नमन करें, और यह कहें — “आपके बिना यह जीवन अधूरा है।” डॉक्टर हमारे जीवन के वे स्तंभ हैं, जो न केवल हमें गिरने से बचाते हैं, बल्कि हर बार, हर चुनौती के बाद हमें खड़ा भी करते हैं।
डा. राय जैसे महान व्यक्तित्व की स्मृति में जब एक पूरा देश, और विदेशों में बसे भारतवासी भी, 1 जुलाई को डॉक्टर्स डे मनाते हैं, तो वह केवल एक व्यक्ति की जयंती नहीं होती — वह एक विचार, एक परंपरा, एक जीवन दर्शन की पूजा होती है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि सेवा, संवेदना और समर्पण ही वे मूल्य हैं जो किसी डॉक्टर को महामानव बनाते हैं।
आज जब हम कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के अनुभव से गुजर चुके हैं, और जब लाखों डॉक्टरों ने अपनी जान जोखिम में डालकर मानवता की सेवा की, तब यह दिन और भी ज्यादा अर्थपूर्ण हो गया है। हर मास्क के पीछे एक चेहरा है, जो थकता है, पर हारता नहीं। हर सफेद कोट के भीतर एक दिल है, जो धड़कता है — केवल दूसरों के लिए।
समर्पण ट्रस्ट का यह मानवीय प्रयास उन अनाम डॉक्टरों को भी उजागर करता है जो छोटे कस्बों, दूरदराज़ के गांवों या सरकारी अस्पतालों में चुपचाप अपनी ड्यूटी निभाते हैं। जो बड़ी तस्वीर का हिस्सा नहीं बनते, पर जिनके छोटे-छोटे प्रयास मिलकर लाखों जिंदगियों को रोशन करते हैं।
नेशनल डॉक्टर्स डे, डॉ. राय की जयंती और पुण्यतिथि पर, एक सामूहिक प्रणाम है — उन सभी को, जो निःस्वार्थ सेवा की प्रतिमूर्ति हैं। आइए, इस दिन हम केवल सम्मान न करें, बल्कि एक वादा भी करें — कि हम डॉक्टरों की मेहनत को समझेंगे, उन्हें सहयोग देंगे, और हर उस व्यक्ति को धन्यवाद देंगे, जिसने किसी दिन हमारी साँसों को फिर से गिनती देना सिखाया।
क्योंकि डॉक्टर सिर्फ़ इलाज नहीं करते — वे उम्मीद बाँधते हैं। वे जीवन को स्पर्श करते हैं। और यही उन्हें इस धरती का ईश्वर बना देता है।