गवरी बाई के नाम से मशहूर लोकगायिका गवरी देवी का जन्म 14 अप्रैल 1920 को बीकानेर के राजदरबारी गायक बंशीलाल-जमुनादेवी दमामी के घर में हुआ। उन्हें राजस्थान की मरू कोकिला के नाम से भी जाना जाता है। लोक संगीत की विशिष्ट गायन शैली मांड के लिए उन्होंने ख्याति हासिल की। हालांकि वे ठुमरी, भजन और गजल गायिकी में भी पारंगत थीं। वर्ष 1957 में गवरी देवी ने रेडियो और दूरदर्शन पर मांड गायकी के कार्यक्रम देने शुरू किए जो काफी लोकप्रिय रहे।
वर्ष 1962 में मद्रास संगीत नाटक एकेडमी तथा 1965 व 1983 में गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में लोक नृत्य उत्सव में गवरी देवी को सम्मानित किया गया। 1986 में भारत सरकार ने उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया। कला और संगीत में उनके योगदान के लिए राजस्थान सरकार ने 2013 में उन्हें मरणोपरांत राज्य के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार राजस्थान रत्न से सम्मानित किया। 29 जून 1988 को गवरी देवी का निधन हो गया।
10वीं-11वीं शताब्दी में जैसलमेर, मांड क्षेत्र कहलाता था। इस इलाके में विकसित गायन शैली मांड कहलाई। राजस्थान की गायन शैलियों में सर्वाधिक लोकप्रिय यह शृंगार प्रधान गायन शैली है। जिसका इस्तेमाल राजस्थानी लोकगीतों में अक्सर किया जाता है। यह ठुमरी और गजल जैसी ही है।