गांधीनगर : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका को अहम बताते हुये कहा कि रक्षा का क्षेत्र अब केवल यूनिफॉर्म और डंडे तक सीमित नहीं है। प्रौद्योगिकी अब सुरक्षा तंत्र में एक संभावित हथियार बन गई है। ऐसे में हमें उसकी आवश्यकता के अनुरूप स्वयं को तैयार करना है।
अपनी गुजरात यात्रा के दूसरे दिन प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि रक्षा के क्षेत्र में 21वीं सदी को जो चुनौतियां हैं, उनके अनुकूल हमारी व्यवस्था भी विकसित हो और उन व्यवस्थाओं को संभालने वाले व्यक्तित्व का विकास हो, इसके लिए इस विश्वविद्यालय का जन्म हुआ है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय असल में भारतीय कानून और व्यवस्था बढ़ाने की कवायद में ‘देश का गहना’ है। ये विश्वविद्यालय देशभर में रक्षा के क्षेत्र में अपना करियर बनाने के इच्छुक लोगों के लिए महत्वपूर्ण है।
सुरक्षा तंत्र के लिए तनाव मुक्त प्रशिक्षण गतिविधियों को समय की जरूरत बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि तनाव की अनुभूति हमारे सुरक्षा बलों के सामने एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए ट्रेनर्स की आवश्यकता हो गई है। ऐसे में राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय इस प्रकार के ट्रेनर भी तैयार कर सकती है। आगे उन्होंने कहा कि सुरक्षा बलों में केवल शारीरिक प्रशिक्षण ही काफी नहीं, अब शारीरिक रूप से फिट न होने के बावजूद दिव्यांग व्यक्ति भी सुरक्षा क्षेत्र में योगदान दे सकते हैं।
देश में अपराध पर अंकुश के लिए आधुनिक प्रशिक्षण को जरूरी बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि तकनीक एक बहुत बड़ी चुनौती है। अगर विशेषज्ञता नहीं है, तो समय पर जो करना चाहिए, वो हम नहीं कर पाते हैं। जिस प्रकार से साइबर सिक्योरिटी के मुद्दे सामने आते हैं और क्राइम में तकनीक बढ़ती जा रही है, उसी प्रकार से क्राइम को कम करने में तकनीक बहुत मददगार भी हो रही है।
उन्होंने कहा कि रक्षा विश्वविद्यालय को फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर काम करना चाहिए। तीनों विश्वविद्यालयों के बीच संवाद के लिये उन्होंने समय-समय पर संगोष्ठी (सिम्पोजियम) आयोजित करने की सलाह दी।
प्रधानमंत्री ने केंद्र की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर अपरोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि दुर्भाग्य से आजादी के बाद देश में कानून व्यवस्था के लिए जो काम होना चाहिए था, उसमें हम पीछे रह गए।
अपने संबोधन में उन्होंने सेना और पुलिस को लेकर बनी अवधारणाओं का उल्लेख करते हुये कहा कि आजादी के बाद देश के सुरक्षा तंत्र में सुधार की जरूरत थी। एक धारणा विकसित की गई थी कि हमें वर्दीधारी कर्मियों से सावधान रहना होगा लेकिन अब यह बदल गया है। लोग वर्दीधारी कर्मियों को देखते हैं, तो उन्हें मदद का आश्वासन मिलता है।
उन्होंने कहा कि आज भी पुलिस के संदर्भ में जो अवधारणा बनी है, वो ये है कि इनसे दूर रहो। वहीं सेना के लिए अवधारणा है कि सेना के लोग आ जाएं तो कोई परेशानी नहीं होती। आज भारत में ऐसी मैन पावर को सुरक्षा के क्षेत्र में लाना जरूरी है, जो सामान्य मानवी के मन में मित्रता की, विश्वास की अनुभूति कर सके।
प्रधानमंत्री ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंदर जनता-जनार्दन को सर्वोपरि मानते हुए समाज में द्रोह करने वालों के साथ सख्त नीति और समाज के साथ नरम नीति, इस मूल मंत्र को लेकर हमें ऐसी ही व्यवस्था विकसित करनी होगी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि गांधीनगर आज शिक्षा की दृष्टि से एक बहुत बड़ा वाइब्रेंट एरिया बनता जा रहा है। एक ही इलाके में कई सारी यूनिवर्सिटी और दो यूनिवर्सिटी ऐसी हैं जो पूरे विश्व में पहली यूनिवर्सिटी है। फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी पूरी दुनिया में कहीं पर नहीं है। पूरी दुनिया में कहीं पर भी चिल्ड्रेन यूनिवर्सिटी नहीं है। गांधीनगर और हिंदुस्तान अकेला ऐसा है, जिसके पास से दो यूनिवर्सिटी है।
रक्षा क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि सेना में बेटियों की भागीदारी बढ़ रही है। विज्ञान हो, शिक्षा हो या सुरक्षा, महिलाएं आगे बढ़ रही हैं। अब सैनिक स्कूलों में भी बेटियों को प्रवेश मिल रहा है। प्रधानमंत्री ने आज डिग्री प्राप्त करने वालों से जीवनभर रक्षा क्षेत्र में प्रतिष्ठा बनाये रखकर नई पीढ़ी को प्रेरित करने का आह्वान किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज के ही दिन नमक सत्याग्रह के लिए इसी धरती से दांडी यात्रा की शुरुआत हुई थी। अंग्रेजों के अन्याय के खिलाफ गांधीजी के नेतृत्व में जो आंदोलन चला, उसने अंग्रेजी हुकूमत को हम भारतीयों के सामूहिक सामर्थ्य का एहसास करा दिया था। उन्होंने दांडी यात्रा में शामिल हुई सभी सत्याग्रहियों का पुण्य स्मरण भी किया।