इतिहास के पन्नों में 06 अगस्तः जापान के सीने से कभी नहीं मिट सकते हिरोशिमा-नागासाकी के जख्म

देश-दुनिया के इतिहास में 06 अगस्त की तारीख तमाम तरह के बदलावों के लिए दर्ज है। मगर इतिहास के पन्नों को सबसे ज्यादा द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए पलटा जाता है। वजह यह है कि दुनिया में पहली और आखिरी बार परमाणु बमों का इस्तेमाल दूसरे विश्वयुद्ध में ही हुआ था। अमेरिका ने जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी को मकतल में बदल दिया था। अमेरिका ने पहला परमाणु बम 06 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा और दूसरा 09 अगस्त, 1945 को नागासाकी में गिराया था।

अमेरिका ने तीन दिन में दोनों शहरों को लगभग तबाह कर दिया था। इस दौरान दो लाख से अधिक लोगों की जान चली गई और जो बच गए, उनकी जिंदगी नर्क से बदतर हो गई। इस युद्ध में जर्मनी ने आत्मसमर्पण कर दिया था और सिर्फ जापान ही था जो मित्र देशों को टक्कर दे रहा था। जुलाई 1945 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन, ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और सोवियत संघ के नेता जोसेफ स्टालिन जर्मनी के शहर पोट्सडम में मिले। यहां तय हुआ कि अगर जापान बिना शर्त समर्पण नहीं करता है तो उसके खिलाफ सख्त कदम उठाने होंगे।

और 06 अगस्त की सुबह करीब आठ बजे हिरोशिमा पर परमाणु बम का जोरदार हमला किया। यह हमला इतना शक्तिशाली था कि देखते ही देखते 1.40 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। बम धमाकों के बाद तापमान इतना ज्यादा बढ़ गया कि लोग जलकर खाक हो गए। एक मिनट के अंदर ही हिरोशिमा शहर का 80 फीसदी हिस्सा राख हो गया।

तबाही यही नहीं थमी। इसके बाद हजारों लोग परमाणु विकिरण से जुड़ी बीमारियों के चलते मारे गए। एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि बम गिरने की जगह के 29 किलोमीटर क्षेत्र में काली बारिश हुई। जापान इस हमले से संभल पाता कि अमेरिका ने 09 अगस्त को नागासाकी में दूसरा परमाणु बम गिरा दिया। इन दो हमलों से जापान पूरी तरह बर्बाद हो गया। मरने वालों का सटीक आंकड़ा आज तक पता नहीं चला। माना जाता है कि हिरोशिमा में 1.40 लाख और नागासाकी में करीब 70 हजार लोग मारे गए। इसके अलावा हजारों लोग घायल हुए। जापान के लोगों में आज भी इस त्रासदी जख्म मौजूद हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *