भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अप्रतिम क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा को महज 24 साल की उम्र में 17 अगस्त 1909 को लंदन के पेंटविले जेल में फांसी दी गई। उन्होंने ब्रिटिश अधिकारी विलियम हट कर्जन वायली की गोली मार कर हत्या कर दी थी।
23 जुलाई 1909 को उनपर अभियोग चलाया गया। अदालत में इस महान क्रांतिकारी ने खुले शब्दों में कहा- मुझे गर्व है कि मैं अपना जीवन समर्पित कर रहा हूं। भारत सरकार ने 1992 में इस प्रखर राष्ट्रवादी की स्मृति में डाक टिकट जारी किया।
मदनलाल धींगड़ा का जन्म 18 फरवरी सन 1883 को पंजाब प्रान्त के सम्पन्न हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके पिता दित्तामल जी सिविल सर्जन थे और अंग्रेजी रंग में पूरी तरह रंगे हुए थे। उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था। जब मदनलाल को भारतीय स्वतन्त्रता सम्बन्धी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में लाहौर के एक कालेज से निकाल दिया गया तो परिवार ने मदनलाल से नाता तोड़ लिया।
आगे चल कर लंदन में वे प्रख्यात राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा के संपर्क में आए। राष्ट्रवादी नौजवानों का यह जत्था खुदीराम बोस, कन्हाई लाल दत्त, सतिन्दर पाल और काशी राम जैसे क्रान्तिकारियों को फांसी दिए जाने से काफी नाराज था और इसका बदला लेने का प्रण कर चुका था।
1 जुलाई 1909 की शाम को इण्डियन नेशनल ऐसोसिएशन के वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिये भारी संख्या में भारतीय और अंग्रेज इकठे हुए। जैसे ही भारत सचिव के राजनीतिक सलाहकार विलियम हट कर्जन वायली अपनी पत्नी के साथ हाल में घुसा, ढींगरा ने उसके चेहरे पर पाँच गोलियाँ दागी, जिनमें चार सही निशाने पर लगीं। उसके बाद धींगड़ा ने अपनी पिस्तौल से स्वयं को भी गोली मारनी चाही किन्तु उन्हें पकड़ लिया गया।