देश-दुनिया के इतिहास में 21 अगस्त को तमाम घटनाओं के लिए याद किया जाता है। यह तारीख भारत में वन्यजीव संरक्षण के लिए इतिहास में दर्ज है। भारत में पहली बार वन्य जीव संरक्षण कानून, 1972 में 21 अगस्त को ही अस्तित्व में आया था। इसलिए इसे वन्यजीव संरक्षण का ‘बड़ा’ दिन भी कहा जाता है। वन्य जीव संरक्षण कानून 1972 में अब तक कई बार संशोधन हो चुके हैं। अब आठवां संशोधन प्रस्तावित है। इसे 09 दिसंबर, 2021 को लोकसभा में पेश किया गया था। इससे पहले 1982, 1986, 1991, 1993, 2002, 2006 और 2013 में इसमें संशोधन हो चुके हैं। इस साल दो अगस्त को लोकसभा में ‘वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2021’ पर चर्चा हो चुकी है। इस चर्चा के जवाब में केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री भूपेंद्र यादव ने केंद्र सरकार की वनों और वन्य जीवों के संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने कहा कि सरकार की परिकल्पना है कि धरती हरी-भरी रहे और धरती पर सभी जीव सह-अस्तित्व में रहें। विधेयक के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए यादव ने कहा कि वन्य जीवों को वर्मिन घोषित करने के विषय को असंवेदनशीलता से नहीं लिया जा सकता। कई जगह जंगली सूअर और अन्य पशु खेती को प्रभावित करते हैं। इस लिहाज से उनके मंत्रालय ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं। संबंधित चीफ वार्डन अपने क्षेत्र के हिसाब से इस बाबत निर्णय ले सकते हैं। सरकार के जवाब के बाद सदन ने विभिन्न सदस्यों के संशोधनों को अस्वीकृत करते हुए ध्वनिमत से विधेयक को मंजूरी प्रदान कर दी।
विधेयक में जीवित प्राणियों की बेहतर देखरेख और जीवित हाथियों के परिवहन संबंधी प्रावधान हैं। यादव ने कहा कि विधेयक में प्रावधान शामिल किया गया है कि राष्ट्रीय अभयारण्य घोषित करते समय आदिवासियों और वहां रहने वाले परंपरागत समुदायों को तुरंत विस्थापन को नहीं कहा जाए तथा जब तक विस्थापन पूरा नहीं हो जाता, उनके पानी आदि के अधिकार संरक्षित रहें। उन्होंने कहा कि यह सरकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्देश पर गरीबों के कल्याण और आदिवासियों के संवर्द्धन के लिए काम कर रही है। देश में हाथियों को लेकर धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा रही है। हाथियों के संरक्षण को लेकर प्रावधान यथावत जारी रहेंगे।
विधेयक पर अध्ययन करने वाली कांग्रेस नेता जयराम रमेश की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने हाथियों की बिक्री और खरीद को प्रोत्साहित नहीं किए जाने पर जोर दिया है। समिति ने परंपराओं और संरक्षण के बीच संतुलन की बात कही है। सरकार ने कहा है कि आज भारत में 65,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र हाथियों के लिए है। दुनिया के 75 प्रतिशत बाघ, 60 प्रतिशत हाथी, 100 प्रतिशत एशियाई शेर हमारे देश में हैं। उल्लेखनीय है कि भारत 1976 से ‘वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (कंवेशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन इनडेंजर्ड स्पीसिज ऑफ वाइल्ड फोना एंड फ्लोरा-सीआईटीईएस) का पक्षकार है।