बंगाल में राष्ट्रीय औसत के मुकाबले प्रसव के दौरान महिलाओं की हो रही अधिक मौतें

कोलकाता : भारत में मातृ मृत्यु दर ( एमएमआर) तेजी से गिर रहा है, लेकिन सर्वे का दावा है कि पश्चिम बंगाल को इस मामले में सफलता नहीं मिल रही है। एमएमआर की नई अखिल भारतीय सूची में 2014-16 की अवधि के दौरान पश्चिम बंगाल सातवें स्थान पर था। वर्ष 2018-20 में यह दसवें स्थान पर आ गया।

मातृ मृत्यु दर या एमएमआर एक निर्दिष्ट अवधि के भीतर प्रति एक लाख जन्मों पर होने वाली मौतों का अनुपात है। भारत में मातृ मृत्यु दर दो दशक पहले की तुलना में लगभग एक चौथाई कम हो गई है। इस मामले में भारत की स्थिति पड़ोसी देश बांग्लादेश, पाकिस्तान और भूटान से काफी बेहतर है, लेकिन श्रीलंका, इंडोनेशिया जैसे कई देश भारत से बेहतर हैं। पिछली शताब्दी के अंत में भारत में औसत एमएमआर 400 थी। 2007-09 में यह घटकर 212 रह गई। 2010-12 में मातृ मृत्यु दर 16 प्रतिशत घटकर 178 हो गया था। 2014-16 में इसमें और 27 प्रतिशत की गिरावट आई और यह घट कर 130 हो गया। 2014-16 की तुलना में, 2018-20 का एमएमआर 25 प्रतिशत की कमी के साथ 97 पर रहा। सर्वेक्षण से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब आदि जैसे राज्यों ने देश में मातृ मृत्यु दर में समग्र कमी की तुलना में कम सुधार दिखाया है।

संबंधित सूची से पता चलता है कि 2014-16 से 2018-20 तक, देश के लगभग सभी राज्यों में एमएमआर में कमी आई है, लेकिन पश्चिम बंगाल में यह 101 से बढ़कर 103 हो गया। इन दो अवधियों में केरल, महाराष्ट्र, तेलंगाना क्रमशः 46, 61, 81 से घटकर क्रमशः 19, 33 और 43 पर पहुंच गए।

बंगाल सरकार करती रही है अलग दावा, सर्वे पर साधी चुप्पी

खास बात यह है कि बंगाल की स्वास्थ्य राज्य मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने विधानसभा में भी कई बार दावा कर चुकी हैं कि पश्चिम बंगाल में बाल और मातृ मृत्यु दर तेजी से घट रहा है। उन्होंने कहा, “हमारा एमएमआर और भी कम हो गया है। यह प्रति एक लाख डिलीवरी पर 109 थी। अब यह 103 है।” हालांकि सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के सर्वे में केवल पश्चिम बंगाल में मातृ मृत्यु दर बढ़ने को लेकर उन्होंने कोई जवाब देना मुनासिब नहीं समझा। जाने-माने डॉक्टर संजीव मुखोपाध्याय से जब इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘यह कहना बेहतर होगा कि इस राज्य की स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। 117 और 122 के बीच कोई अंतर नहीं है। सुधार न होने का कारण बताना भी मुश्किल है। क्योंकि यहां मातृ मृत्यु लेखापरीक्षा बहुत विकसित नहीं है। मेरी अपनी राय है कि सहायक देखभाल केंद्रों में मृत्यु दर अधिक है। लेकिन उनका तर्क होगा कि मरीज को दूसरी जगह से ट्रांसफर किया जाता है या खराब स्थिति में आता है। यदि कोई ऑडिट नहीं होगा तो मूल कारण बताना संभव नहीं है।”

डायमंड हार्बर नर्सिंग कॉलेज की कार्यवाहक प्राचार्य और नर्सेज एसोसिएशन की पदाधिकारियों में से एक मानसी जाना 23 साल से इस काम से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने कहा कि स्वस्थ बच्चे और माताएं किसी भी समाज की संपत्ति होते हैं। पश्चिम बंगाल ने पिछले कुछ वर्षों में इस संबंध में सुधार किया है। उसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ दिक्कतें हैं। मसलन, मांग की तुलना में दक्ष आया की कमी। दूसरा, वाहनों की कमी या खराब सड़कों के कारण कुछ मामलों में आसन्न डिलीवरी को जल्दी से स्थानांतरित करना। तीसरा, प्राथमिक और माध्यमिक स्वास्थ्य केंद्रों आदि के बीच समन्वय।

डॉक्टर मुखोपाध्याय ने बताया कि मातृ मृत्यु दर को और कम करने के लिए भारत सरकार ने ”नर्स प्रैक्टिशनर्स इन मिडवाइफरी” नामक एक कार्यक्रम शुरू किया है। देश में लगभग एक लाख नर्सों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इसके अलावा ”मिडवाइफ डे केयर” की व्यवस्था की जा रही है। अकेले बंगाल में 2020-25 की अवधि में करीब छह हजार नर्सों को इस कारण से तैनात किया जा रहा है। हालांकि, भीड़भाड़ के कारण परेशानी हुई है। उम्मीद है जल्द ही इस काम में तेजी आएगी।

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