श्वास ही ईश्वर स्वरूप है : परमहंस प्रज्ञानानन्द

कोलकाता : माँ हमें अपने दस हाथों से सब देने को आतुर है पर हम है जो उसके सामने दो हाथ पसारते है। यह कहना है परमहंस  प्रज्ञानानन्द का। शुक्रवार को रामकृष्ण मंच पर सभा को सम्बोधित कर रहे थे।

प्रज्ञान मिशन द्वारा आयोजित वार्षिक कार्यक्रम के तहत वे “सक्रिय रूप से शांत और शान्ति भाव से सक्रिय रहें: अपनी आत्मा से मित्रता कैसे करें, और डर और चिंता पर विजय प्राप्त करें” इस विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि भय, क्रोध, ईर्ष्या, लोभ आदि पर काबू करते हुए मन और मस्तिष्क को सन्तुलित करना चाहिए। जैसे मां दुर्गा के पैरों के नीचे महिषासुर होता है जिसका दमन मां अपने दस भुजाओं से करती है। ठीक उसी तरह से हमें अपने अन्दर की कुंठाओं का दमन करने के लिए हमें अपनी पूरी ताकत लगानी चाहिए।

प्रज्ञानानन्द जी ने बताया कि बंगाल और हमारे देश की धरती योगियों की है,

बंगाल की धरती योगियों की धरती है और हमें भोग की प्रवृत्तियों से बचकर योग और ध्यान के माध्यम से आत्म-नियंत्रण और शांति की ओर अग्रसर होना चाहिए। श्वास को ईश्वर स्वरूप मानते हुए उसका ध्यान करना चाहिए, क्योंकि यह ही हमारे मन को स्थिर और शांत कर सकता है।

इस अवसर पर एक पुस्तक मुक्त कोरो भय का लोकापर्ण भी किया गया। कार्यक्रम में मौजूद थे स्वामी स्वरूपानंद गिरि, स्वामी प्रबुद्धानंद गिरि, स्वामी महेशानंद गिरि, आचार्य स्वप्ना चटर्जी।

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