कोलकाता : पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार शिक्षा क्षेत्र में एक नई परंपरा शुरू करने जा रही है। इसके अंतर्गत राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति अब राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री होंगे। इस संबंध में गुरुवार को राज्य कैबिनेट की बैठक में शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से अनुमोदित कर दिया गया है।
मंत्रिमंडल के अनुमोदन के बाद जल्द ही विधानसभा में इससे संबंधित बिल लाया जाएगा। इस संबंध में शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु ने बताया कि मंत्रिमंडल ने सर्वसम्मति से एक निर्णय लिया है कि पश्चिम बंगाल के सभी सरकारी विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री पदेन कुलाधिपति मान्य होंगे।
दरअसल, राज्यपाल के साथ टकराव के चलते राज्य सरकार लंबे समय से इस प्रस्ताव पर विचार कर रही थी। पिछले साल दिसंबर में ही शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु ने इस बात के संकेत दे दिए थे। वर्तमान नियमों के अनुसार किसी भी राज्य के राज्यपाल उस राज्य के सरकारी नियंत्रण वाले सभी विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति हैं। इसी तरह प्रधानमंत्री केंद्रीय विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति होते हैं।
उल्लेखनीय है कि लंबे समय से पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ और ममता बनर्जी सरकार के बीच तल्खी चल रही है। खास तौर पर शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर सचिवालय और राजभवन के बीच टकराव के कई उदाहरण मौजूद हैं। राज्य के शिक्षा मंत्री कई बार यह आरोप लगा चुके हैं कि राज्यपाल के नकारात्मक रवैए की वजह से ही राज्य में शिक्षा व्यवस्था को आघात लग रहा है।
दूसरी तरफ राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी राज्य की शिक्षा व्यवस्था में राजनीतिक हस्तक्षेप पर कई बार आपत्ति जता चुके हैं। इससे पहले राज्यपाल ने राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक बुलाई थी लेकिन एक भी कुलपति बैठक में नहीं पहुंचे थे। इसके अलावा कुलपतियों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर भी राज्यपाल सवाल खड़े करते रहे हैं।
माना जा रहा है कि शैक्षणिक मामलों में राज्यपाल की अति सक्रियता की वजह से ही राज्य सरकार उन्हें पदेन कुलाधिपति के सम्मान से वंचित करने की योजना पर अमल करने जा रही है। राज्य सचिवालय के सूत्रों के अनुसार वर्ष 2010 में गठित एक आयोग ने राज्यपाल की जगह मंत्री को विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति घोषित करने की अनुशंसा की थी, उसी को आधार बनाकर मंत्रिमंडल ने यह फैसला किया।