कोलकाता : कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज एवं खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज द्वारा पश्चिम बंग हिन्दी अकादमी एवं पश्चिम बंगाल सरकार के सहयोग से दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गयी। संगोष्ठी का विषय ‘आजादी का सन्दर्भ : ‘भारत – भारती’ और ‘पथिक’’ था।
समारोह का उद्घाटन कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज की प्राचार्या डा. सत्या उपाध्याय, विशिष्ट अतिथि एवं खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज की संचालन समिति के अध्यक्ष देवाशीष मल्लिक, खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज के प्रिंसिपल सुबीर कुमार दत्त, कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज की जीबी की सदस्य मैत्रेयी भट्टाचार्य ने किये एवं अपने विचार रखे। स्वागत भाषण कलकत्ता गर्ल्स की प्राचार्या डॉ. सत्या उपाध्याय ने दिया। उन्होंने आजादी के अमृत महोत्सव के सर्व भारतीय आयोजन में कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज की अपनी भूमिका और अपने उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।
कॉलेज में इस कार्यक्रम की यह छठवीं कड़ी है। आजादी के अमृत महोत्सव के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय जनमानस के पुनरविवेचन और पुनरनिरीक्षण के लिए इसकी महती आवश्यकता है। महाविद्यालयी स्तर पर यह अपने ढंग का अनूठा और अकेला आयोजन है। बंगाल में किसी भी कॉलेज में इस तरह का कार्यक्रम नहीं आयोजित किया गया है।
संगोष्ठी में बीज वक्तव्य विश्वभारती, शांति निकेतन की प्रो. डॉक्टर मंजूरानी सिंह ने दिया। उन्होंने कहा कि देश और समाज के साथ खुद के लिए भी आजादी का महत्व समझना आवश्यक है। ‘भारत – भारती’ में मैथिली शरण गुप्त ने अतीत में जाकर प्राचीन वेदों एवं पौराणिक साहित्य के माध्यम से भारत के अतीत का गौरव गान किया है। गुप्त जी भारतीय संस्कृति के सच्चे उपासक हैं। वहीं रामनरेश त्रिपाठी ‘पथिक’ लिखते हैं और यह गाँधी जी के उदित होने का समय है। इन दोनों कृतियों से यह स्पष्ट है कि युद्ध और हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है।
उत्तर बंग विश्वविद्यालय के प्रो. सुनील कुमार द्विवेदी ने कहा कि रचनाकार भी इतिहासकार होता है जो वर्तमान की जमीन पर बैठकर लिखता है और भविष्य को दृष्टि देता है। गुप्त जी ने ईश वंदना के माध्यमसे देश की वंदना की है। ‘भारत – भारती’ और ‘पथिक’ एक दूसरे से जुड़ी हुई कृतियाँ हैं। अध्यक्षीय वक्तव्य में कलकत्ता विश्वविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. राजश्री शुक्ला ने कहा कि ‘भारत – भारती’ ने हिन्दी के कवियों की भाषिक सोच एवं चिन्तन को आधार दिया। पथिक अपने समय की महत्वपूर्ण कृति है जो ‘भारत – भारती’ की चिन्तन धारा को आगे ले जाती है। ‘भारत – भारती’ एवं ‘पथिक’, दोनों ही कृतियाँ भौतिकता से आगे बढ़कर आध्यात्मिकता की बात करती हैं।
उद्घाटन सत्र का संचालन कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. धनंजय साव एवं प्रथम अकादमिक सत्र का संचालन नवारुणा भट्टाचार्य ने किया। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में गोविन्द यादव, प्रो. कमल कुमार, विक्रम साव, दिव्या प्रसाद, मधु सिंह, डॉ. पलाशी विश्वास, राहुल गौड़, नवारुणा भट्टाचार्य, डॉ. विजया शर्मा, पुष्पा मिश्रा ने शोध पत्र वाचन किया।
संगोष्ठी के दूसरे दिन प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय के प्रो. ऋषिभूषण चौबे ने ‘भारत – भारती’ और ‘पथिक’ के महत्व का उल्लेख करते हुए कहा कि जब भी वर्तमान परेशान करे तब पीछे जाकर संघर्ष को देखने की जरूरत है। इस परिप्रेक्ष्य में ये दोनों कृतियाँ महत्वपूर्ण हैं।
ऋषि बंकिम चन्द कॉलेज के प्रो. ऋषिकेश सिंह ने कहा कि वह बौद्धिकता किसी काम की नहीं जो स्वाधीनता न दिलाए। वहीं ‘पथिक’ में अभिव्यक्ति के अधिकार की बात की गयी है। ‘भारत – भारती’ एवं ‘पथिक’ दोनों ही युग बोध से परिपूर्ण कृतियाँ हैं।
इस अकादमिक सत्र की अध्यक्षता करते हुए रामनरेश त्रिपाठी संस्थान के प्रो. डॉ. ओंकारनाथ द्विवेदी ने ‘पथिक’ पर केन्द्रित अपने व्याख्यान में कहा कि मैथिली शऱण गुप्त की ‘भारत – भारती’ चिन्तन की पृष्ठभूमि देती है और ‘पथिक’ उस राह पर चल देते हैं। रामनरेश त्रिपाठी ‘पथिक’ के माध्यम से स्थितियों का अवगाहन कर आँखों देखा हाल बताते हैं। पथिक को गाँधी ने पढ़ा था, स्वीकार किया, यह स्वाधीनता सेनानियों एवं युवाओं के हाथ में रहती थी। इसके 90 संस्करण निकल चुके हैं जो इस कृति की लोकप्रियता का उदाहरण हैं। सत्र का संचालन मधु सिंह ने किया।
रेवेंसा विश्वविद्यालय की प्रो. अंजुमन आरा ने कहा कि मैथिली शरण गुप्त निराश मन में आशा का संचार करते हैं। उनमें जनजागरण की भावना, युगबोध विद्यमान है। विद्यासागर विश्वविद्यालय के प्रो. प्रमोद कुमार साव ने कहा कि हमें अपने रचनाकारों से प्रेरणा लेनी चाहिए। खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. शुभ्रा उपाध्याय ने पथिक की पँक्तियों का पाठ करते हुए कहा कि ‘पथिक’ हमारे पराधीन भारत की गीता है। भारत – भारती के साथ हम चिन्तन कर रहे हैं और पथिक के साथ यात्रा कर रहे हैं। कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. धनंजय कुमार साव ने कहा कि इतिहास दृष्टि का अर्थ अतीत जीवी होना नहीं है। ‘भारत – भारती’ के माध्यम से गुप्त जी ने पराधीन ‘भारत – भारती’ की समीक्षा की है और इसके लिए इतिहास, पुराण एवं लोक की सहायता ली है। सत्र की अध्यक्षता डॉ. मंजूरानी सिंह ने की। इस अवसर पर प्रख्यात रंगकर्मी उमा झुनझुनवाला ने भारत – भारती एवं पथिक की पँक्तियों का पाठ किया। सत्र का संचालन राहुल गौड़ ने किया। संगोष्ठी में बड़ी संख्या में युवा एवं साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे। संगोष्ठी का समापन सबके प्रति आत्मीय आभार के साथ डॉ. शुभ्रा उपाध्याय ने किया।