– बंगाल में संघ परिवार के विस्तार के लिए ममता बनर्जी की राजनीतिक शैली को जिम्मेदार ठहराया
कोलकाता : पश्चिम बंगाल में तीन दशकों तक शासन करने वाली वामपंथी पार्टियां वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में लगातार उपचुनाव से लेकर नगरपालिका और हर स्तर पर मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। अब वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अभी से राजनीतिक रणनीति बनाई जाने लगी है। सीपीएम ने हिंदूवादी संगठनों से मुकाबले के लिए ‘हिंदुत्व निगरानी समूह’ बनाया है।
सीपीएम के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने कोलकाता में हुई पार्टी की दो दिवसीय राज्य समिति की बैठक के समापन पर इस ‘हिंदुत्व निगरानी समूह’ की घोषणा की। सलीम ने कहा कि हमारी केंद्रीय समिति ने फैसला लिया है कि हम राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ सभी राज्यों में इस तरह के संगठन बनाएंगे। बंगाल में कई लोग अपने स्तर पर यह काम कर रहे हैं। सीपीएम के चार युवा नेताओं कलतान दासगुप्ता, सोमनाथ भट्टाचार्य, सत्यजीत बनर्जी और मधुजा सेनरॉय को आरएसएस समेत हिंदुत्व की गतिविधियों और विस्तार पर नजर रखने का जिम्मा सौंपा है।
सलीम ने कहा कि मुझे विभिन्न स्रोतों से पता चला है कि जब ममता ने वर्ष 2011 में राज्य की कमान संभाली थी, तब बंगाल में आरएसएस की करीब 700 शाखाएं थीं। आरएसएस और उसके सहयोगी नफरत फैलाने और सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने के तरीके बना रहे हैं। हमारी पार्टी राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से इससे निपटेगी।
दूसरी तरफ, आरएसएस के सूत्रों ने बताया कि पिछले एक दशक में बंगाल में संघ का तेजी से विस्तार हुआ है। इस साल मार्च तक पूरे बंगाल में 1,664 दैनिक शाखाएं लग रही हैं। एक साल पहले 1,549 शाखाएं लगती थीं। वर्ष 2011 में ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद से सीपीएम ने बंगाल में संघ परिवार के उदय के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राजनीतिक शैली को जिम्मेदार ठहराया है।
हिंदू एकता के अध्यक्ष देवतनु भट्टाचार्य ने कहा कि सीपीएम अब अस्तित्व के संकट में है। उन्हें सोचने दें कि वे कैसे जीवित रहेंगे। हिंदुत्व अब पश्चिम बंगाल में काफी मजबूत है। उनके पीछे जाना अपना ही विनाश करना है, यह सीपीएम को समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि सिर्फ ‘हिंदुत्व निगरानी समूह’ ही क्यों? इस्लामिक जिहाद वॉच ग्रुप क्यों नहीं?
अखिल भारत हिंदू महासभा के प्रदेश अध्यक्ष (पश्चिम बंगाल) चंद्रचूड़ गोस्वामी ने कहा कि सीपीएम हमेशा दूसरों के भरोसे अस्तित्व बचाने में जुटी है, लेकिन मेरी समझ में नहीं आता कि सीपीएम हिंदुत्व का ही क्यों मुकाबला करना चाहती है, अन्य धार्मिक कट्टरवादों का भी मुकाबला करने का ईमानदार साहस क्यों नहीं दिखाती है?