कोलकाता : घड़ी में रात के 12 बजते ही नए साल का जश्न शुरू हो गया। नए साल के जश्न में डूबे कोलकातावासियों ने इतने पटाखे जलाए कि उन्होंने दीपावली को भी मात दे दी।
उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम, शहर से उपनगर तक, पटाखों की आवाज से रात भर गूंजते रहे। अस्पताल परिसर को भी नहीं छोड़ा गया। पिछले दो साल में कोरोना नियमों के चलते पटाखे जलाने पर रोक लगी हुई थी। लेकिन, इस साल पिछले दो सालों की कसर पूरी कर ली गई। पाटुली, कस्बा, बिराटी इलाकों में शोर की तीव्रता सबसे ज्यादा रही, औसतन 70 डेसिबल से ऊपर। पाटुली में ध्वनि की तीव्रता 81.5 डेसिबल थी। बागबाजार में ध्वनि की तीव्रता 69 डेसिबल, साल्टलेक में 68.3 डेसिबल, टालीगंज में 66 डेसिबल और न्यू मार्केट इलाके में 64.4 डेसिबल थी। शहर के किसी भी अस्पताल परिसर में रात दस बजे से सुबह छह बजे तक शोर का स्तर 40 डेसिबल से अधिक नहीं होना चाहिए। आरजी कर अस्पताल परिसर में तीव्रता 61.5 रही। इसकी तुलना में एसएसकेएम के सामने ध्वनि की तीव्रता कम थी। वहां ध्वनि की तीव्रता 45.1 डेसिबल थी।
वहीं आतिशबाजी शुरू होते ही कोलकाता में हवा की गुणवत्ता खराब हो गई। रात 12 बजे के बाद एयर इंडेक्स का मान क्रमशः फोर्ट विलियम में 171 (सहनीय), रवींद्र सरोवर में 225 (खराब), बालीगंज में 285 (खराब), जाधवपुर में 274 (खराब), रवींद्र भारती विश्वविद्यालय में 320 (बहुत खराब) विक्टोरिया स्क्वायर में 315 (बहुत खराब) और विधाननगर में 331 (बहुत खराब) रहा।
हर साल सर्दियों के मौसम में पिकनिक और पार्टी होते हैं। उन सभी जगहों पर डीजे धूमधाम से बजाया जाता है। बिना नियमों का पालन किए माइक बजाया जाता है। पर्यावरणविदों ने नए साल पर ध्वनि प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए राज्य पुलिस के महानिदेशक (डीजी) को पत्र लिखा था। पत्र में डीजे के उपद्रव और लाउड माइक बजाने पर नियंत्रण करने की भी अपील की गई थी। लेकिन, बीते रात ध्वनि प्रदूषण को देखते हुए ऐसा लगता है कि पर्यावरणविदों की चिट्ठी कुछ खास काम नहीं कर पाई।
अब पुलिस-प्रशासन की भूमिका सवालों के घेरे में है कि तमाम प्रतिबंध होने के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में पटाखे कैसे जलाए गए?