31 दिसंबर 1600 की तारीख, इतिहास का ऐसा मोड़ है जब भारत की तकदीर में अंग्रेजों की गुलामी की बुनियाद रखी गई थी। इसी तारीख को इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने ईस्ट इंडिया कंपनी के पंजीकरण का शाही फरमान जारी करते हुए कहा कि यह कंपनी पूर्वी एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया और भारत के साथ व्यापार करेगी।
मुख्य रूप से मसालों के व्यापार से शुरुआत करने वाली यह कंपनी आगे चलकर व्यापक रूप से भारत में ब्रिटेन के साम्राज्यवादी हितों के लिए काम करते हुए यहां अंग्रेजी हुकूमत की जमीन तैयार कर दी। शुरुआती दशकों में पूर्वी एशिया में व्यापार के साथ-साथ ब्रिटिश सरकार की मदद के लिए इस कंपनी ने भारत व चीन में अपने पांव जमाने शुरू किए। व्यापार में एकाधिकार के साथ उसने राजनीतिक गतिविधियों में भी प्रभावशाली ढंग से दखल देना शुरू कर दिया।
इस कंपनी का रुतबा ऐसा बढ़ा कि इसने भारत समेत दुनिया के एक बड़े हिस्से पर राज किया। कंपनी से यह सरकार में बदल चुकी थी। जिसके पास अपनी फौज और खुफिया तंत्र था। यहां तक कि इस कंपनी को टैक्स वसूली का अधिकार हासिल था। इस दौरान इसने बर्बरता का इतिहास भी लिखा। हालांकि 1857 के विद्रोह के बाद इस कंपनी को 01 जनवरी 1874 को भंग कर ब्रिटिश सरकार ने भारत का नियंत्रण सीधा अपने हाथों में ले लिया।