कोलकाता : राष्ट्रपति चुनाव के जरिये केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकजुटता को उजागर करने की कोशिशों को शुरुआत में ही झटका लगता नजर आ रहा है। राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के साझा उम्मीदवार के तौर पर पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा के चयन को लेकर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के अंदर सवाल उठने लगे हैं। माकपा के कुछ नेता यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं और खुल कर अपना असंतोष जता रहे हैं।
इसी क्रम में माकपा सांसद और कलकत्ता हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विकास रंजन भट्टाचार्य ने यशवंत सिन्हा को लेकर नाराजगी जताई है। कोलकाता के पूर्व मेयर विकास रंजन भट्टाचार्य ने कहा है कि यशवंत सिन्हा को विपक्ष का साझा उम्मीदवार घोषित करना सही फैसला नहीं था। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता का संदेश देने के लिए किसी ऐसे चेहरे पर मुहर लगाया जाना चाहिए था जो सार्वभौमिक स्वीकृति वाला हो। उनका कहना है कि सिन्हा पूर्व में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे हैं और अब एक ऐसी पार्टी में हैं जिसकी राजनीति खून खराबे पर केंद्रित रही है।
हालांकि विपक्षी पार्टियों की बैठक में शामिल सूत्रों ने बताया है कि यशवंत सिन्हा के नाम पर मुहर लगाने से पहले लेफ्ट समेत सभी प्रमुख विपक्षी पार्टियों से सहमति ली गई थी।
विकास रंजन के इस बयान को देखते हुए माकपा के केंद्रीय नेतृत्व ने पश्चिम बंगाल माकपा के नेताओं को यशवंत सिन्हा की उम्मीदवारी को लेकर कोई नकारात्मक बयान न देने का निर्देश दिया है।