‘इम्पैक्ट ऑफ पॉल्यूशन ऑन हेल्थ’ विषय पर चर्चा आयोजित

कोलकाता : वर्ल्ड हेल्थ डे पर पूर्वी भारत की सबसे बड़ी निजी अस्पताल श्रृंखला मेडिका ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स ने कोलकाता स्थित अपनी प्रमुख इकाई मेडिका सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में बुधवार को ‘इम्पैक्ट ऑफ पॉल्यूशन ऑन हेल्थ’ विषय पर एक चर्चा सत्र का आयोजन किया। यह कार्यक्रम हॉस्पिटल की 7वीं मंजिल पर बने कॉन्फ्रेंस रूम में दोपहर 2:30 बजे से आरंभ हुआ। हर साल 7 अप्रैल को वर्ल्ड हेल्थ डे मनाया जाता है। इस दिन के लिए हर बार कोई ऐसी थीम चुनी जाती है, जो डब्ल्यूएचओ की प्राथमिकता वाले किसी खास क्षेत्र को हाईलाइट करती है। वर्तमान महामारी के चलते एक प्रदूषित ग्रह और बीमारियों के बढ़ते मामलों को देखते हुए वर्ल्ड हेल्थ डे 2022 की थीम ‘आवर प्लानेट, आवर हेल्थ’ रखी गई है।

वर्ल्ड हेल्थ डे की पूर्व संध्या पर मेडिका ने प्रदूषण-जनित बीमारियों और स्वास्थ्य गैर-बराबरी मिटाने तथा सभी के लिए एक बेहतर ग्रह और स्वास्थ्य हासिल करने के तरीके खोजने हेतु तत्काल कदम उठाने के लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों के एक पैनल की मेजबानी की। पैनल में डॉ. दिलीप कुमार (सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट) ने ‘एयर पॉल्यूशन कॉजिंग हार्ट ब्लॉकेज, लीडिंग टू डेथ’ के बारे में चर्चा की, डॉ. अविरल रॉय (इंटरनल मेडिसिन एंड क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट) ने ‘मेजर प्रॉब्लम्स सीन इन ओल्ड एंड यंग पीपल ड्यू टू पॉल्यूशन’ पर प्रकाश डाला, डॉ नंदिनी विश्वास (रेस्पिरेटरी मेडिसिन स्पेशलिस्ट) ने ‘एफेक्ट्स ऑफ पॉल्यूशन इन लंग्स’ पर नजर दौड़ाई और डॉ. हर्ष धर (ऑन्कोलॉजिस्ट, हेड एंड नेक सर्जन) ने ‘कैंसर कॉज्ड ड्यू टू वैरियस पॉल्यूशंस एंड एंवायरन्मेंटल हज़ार्ड्स’ के बारे में अपना अनुभव साझा किया। पूरी ईवेंट का संचालन अयनाभ देबगुप्ता (सह-संस्थापक और संयुक्त प्रबंध निदेशक) ने किया।

इस साल की थीम पर ध्यान केंद्रित करते हुए मेडिका सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. दिलीप कुमार ने उल्लेख किया, “प्रदूषण मृत्यु का एक ऐसा कारण है, जिसे नजरअंदाज किया जाता है और वायु प्रदूषण तो दुनिया भर में होने वाली मौतों का चौथा सबसे बड़ा कारण बना हुआ है। हृदयवाहनियों से जुड़े पहलुओं के संदर्भ में प्रदूषण बढ़े हुए एथेरोस्क्लेरोसिस का कारण बन सकता है। एथेरोस्क्लेरोसिस रक्त वाहिनियों के सख्त होने या वाहिनियों में रुकावट पैदा होने जैसा ही है। एथेरोस्क्लेरोसिस कोरोनरी धमनियों के कारण परिधीय धमनियां अवरुद्ध हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप स्ट्रोक और दिल का दौरा पड़ता है। प्रदूषण के कारण उभरने वाला एक सबसे प्रमुख लक्षण है- उच्च रक्तचाप, जो हृदय संबंधी बीमारियों, हृदय गति रुकने और हार्ट फेल होने का कारण भी बनता है। इसके अलावा हृदय अरिद्मिया की दशा में जा सकता है और प्रदूषणकारी तत्वों के कारण अचानक कार्डियक अरेस्ट भी हो सकता है। 1970 के दशक में अमेरिका ने क्लीन एयर एक्ट नामक अधिनियम लागू किया था ताकि वे प्रदूषण से होने वाली अपनी मृत्यु दर को 70% तक घटा सकें।

इसके आगे मेडिका सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल की रेस्पिरेटरी मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉ नंदिनी विश्वास का कहना था- “प्रदूषण तथा इसका हमारे जीवन और पृथ्वी पर पड़ने वाला प्रभाव आज के दिन और पूरी दुनिया के लिए बड़ा ही प्रासंगिक विषय है। संभवतः आने वाले कई वर्षों तक यह विषय प्रासंगिक बना रहेगा। जहां तक हमारे स्वास्थ्य का सवाल है, तो प्रदूषण का हमारे पूरे अस्तित्व पर सीधा हानिकारक प्रभाव पड़ा है और इससे सबसे अधिक क्षतिग्रस्त और प्रभावित होने वाले अंग हमारे फेफड़े हैं। जिस हवा में हम साँस लेते हैं, उसमें ऐसे सूक्ष्म कण और प्रदूषक तत्व मौजूद होते हैं, जो हमारी साँस के माध्यम से हमारे एयरवेज और फेफड़ों के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से सीधे अंदर चले जाते हैं, जिसके हानिकारक प्रभाव श्वसन प्रणाली के भीतर अधिक स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। अगर हमने इसी वक्त इस पर ध्यान नहीं दिया, तो दस या बीस साल बाद दुनिया को एक ऐसे गंभीर संकट का सामना करना पड़ेगा, जिससे समाज पूरी तरह से उबर नहीं पाएगा, क्योंकि आखिरकार अगर समाज स्वस्थ नहीं है, तो और कोई भी चीज स्वस्थ नहीं रहेगी।”

अंत में, मेडिका सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के ऑन्कोलॉजिस्ट, हेड एंड नेक सर्जन डॉ. हर्ष धर ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “प्रदूषण – मनुष्य की गतिविधियों द्वारा हवा, पानी और भूमि में छोड़ा जाने वाला अवांछित कचरा – आज दुनिया में बीमारी का सबसे बड़ा पर्यावरणीय कारण बन चुका है। यह हर साल समय से पहले होने वाली अनुमानित 9.0 मिलियन मौतों, भारी आर्थिक नुकसान, मानव पूंजी के क्षरण और पारिस्थितिकी तंत्रों की तबाही के लिए जिम्मेदार है। बढ़ते औद्योगीकरण और रासायनिक अपशिष्ट निपटान को विनियमित करने वाले उपयुक्त कानूनों की कमी के चलते हम जहरीले रासायनिक पदार्थों के संपर्क में आने का जोखिम उठा रहे हैं। इस प्रदूषण का सबसे विनाशकारी पहलू यह है कि प्लास्टिक को सड़ने-गलने में हजारों साल लग जाते हैं।

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