कोलकाता : गत गुरुवार को भारतीय भाषा परिषद में ‘साहित्यिकी’ एवं ‘शुभजिता’ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित गोष्ठी में संस्था कवि- आलोचक डॉ. गीता दूबे को शुभजिता की ओर से ‘सृजन प्रहरी’ सम्मान प्रदान किया गया एवं शुभ सृजन प्रकाशन द्वारा हालिया प्रकाशित पुस्तक “विस्मृत नायिकाएँ” पर विस्तार से चर्चा हुई। इस शोधपरक पुस्तक में हिंदी साहित्य की उन 35 विस्मृति के अंधकार में गुम सृजनशील कवयित्रियों का उल्लेख है, जिनकी इतिहास में उपेक्षा या अनदेखी हुई है।
साहित्यिकी संस्था की संस्थापिका डॉ. सुकृति गुप्ता जी को उनकी पुण्यतिथि पर याद करते हुए श्रद्धांजलि दी गयी।
संस्था की सचिव डॉ. मंजू रानी गुप्ता ने अतिथियों का स्वागत करते हुए शुभजिता की संस्थापिका और संचालक सुषमा त्रिपाठी को शुभजिता प्रहरी सम्मान डॉ. गीता दूबे को देने के लिए साधुवाद दिया।
रानी बिड़ला गर्ल्स कॉलेज की प्राध्यापिका डॉ. विजया सिंह ने अभिनंदन पत्र का पाठ किया। मुख्य अतिथि डॉ. चन्द्रकला पाण्डेय ने अपनी शिष्या डॉ. गीता दूबे को उत्तरीय पहना कर स्मृति चिन्ह प्रदान किया। उन्होंने कहा कि अविस्मरणीय शाम में विस्मृत नायिकाओं पर चर्चा करना सचमुच महत्वपूर्ण है। हमें पुरानी शब्दावली में नहीं जीना है।
डॉ. शुभ्रा उपाध्याय ने गीता दूबे को अभिनंदन पत्र प्रदान करते हुए उन्हें बधाई दी।
सदस्य वक्ता डॉ. इतु सिंह ने पुस्तक के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि इसमें रत्नावली, जुगलप्रिया, विरंचि कुँवरि, आम्रपाली आदि अनेक स्त्री रचनाकारों की दास्तान है जिनका लेखन उनके समकालीन पुरुष रचनाकारों से कहीं भी कमतर नहीं, बावजूद इसके उनको इतिहास में यथोचित स्थान नहीं मिला। गीता दूबे ने हिंदी साहित्य के इतिहास को देखते हुए हाशिये पर पड़ी हुई बुद्धिमती स्त्री रचनाकारों को केंद्र में लाने की कामयाब कोशिश की है।
अतिथि वक्ता डॉ. शुभ्रा उपाध्याय के अनुसार “विस्मृत नायिकाएँ” आधी आबादी की भूली दास्तानों का इनसाइक्लोपीडिया है। पुस्तक में उद्घृत पैंतीस नायिकाओं पर विशद प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि विस्मृत नायिकाएँ हिन्दी साहित्य के इतिहास का कृष्णपक्ष हैं और गीता दूबे ने इस पुस्तक के माध्यम से एक नई खिड़की खोली है। पुस्तक में भावपक्ष, कलापक्ष, शब्द चयन, शिल्प आदि सभी कुछ उत्कृष्ट है।
डॉ. गीता दूबे ने सम्मान के लिए शुभजिता प्रकाशन की संस्थापिका एवं कार्यक्रम की संचालिका सुषमा त्रिपाठी जी को धन्यवाद देते हुए अपनी गुरु डॉ. चन्द्रकला मैम के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए कहा कि हर स्त्री के अपने संघर्ष होते हैं। हमें पूरे परिवेश को बदलने की कोशिश करनी चाहिए।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कुसुम जैन ने डॉ. गीता दूबे के लेखन कौशल तथा दृष्टि की तारीफ करते हुए उनके लेखन को मन को छूने वाला बताया।
संस्था की अध्यक्ष विद्या भण्डारी ने लेखिका की बेबाकी की प्रशंसा करते हुए उन्हें बधाई दी तथा सभी का आभार ज्ञापन कर कार्यक्रम का समापन किया।