कोलकाता : ऐतिहासिक संस्थान कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में एकदिवसीय व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का विषय ‘हिंदी कविता और सांस्कृतिक प्रतिरोध’ था। इस कार्यक्रम के प्रमुख वक्ता केरल विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका एस. आर. जयश्री जी थी।
विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर रामप्रवेश रजक और श्रीमती राजश्री शुक्ला जी ने सभी को नववर्ष की शुभकामनाएं देते हुए एस. आर. जयश्री, उपस्थित समस्त सारस्वत शोधार्थियों एवं छात्रों का स्वागत किया। प्रोफ़ेसर राजश्री शुक्ला ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रति गौरव बोध प्रकट करते हुए कहा कि भारत की संस्कृति सर्वसमावेशी है और प्रत्येक भारतीय भाषा का एक विशेष महत्व है।
एस. आर. जयश्री जी ने “हिंदी कविता और सांस्कृतिक प्रतिरोध” के विषय में कहते हुए कहा कि साहित्य केवल दर्पण मात्र नहीं होता, वह अपने पाठकों को आलोचनात्मक अंतर्दृष्टि देता है। सांस्कृतिक प्रतिरोध तब शुरू होता है जब देश के सभी समुदाय अपने व्यक्तिगत अस्मिता को लेकर लड़ने लगते हैं, वर्चस्ववादी खतरा उत्पन्न होने पर कोई भी देश पूर्ण नहीं बन पाता। साहित्य कलात्मक सौंदर्य है जो ईमानदारी के साथ वैचारिक परिवर्तन से जुड़ता है और नई संभावनाओं को जन्म देता है।
स्वर्ण , पितृसत्ता , भाषा , कॉर्पोरेट, और सांप्रदायिक वर्चस्व जैसी शक्तियों ने देश में सांस्कृतिक प्रतिरोध को जन्म दिया है। वर्चस्व का प्रतिरोध करने की सृजनात्मक शैली ही साहित्य का प्रतिरोध है। अंत में एस. आर. जयश्री जी ने भारत की हर भाषा व संस्कृति को एक समान बतलाया, इस प्रकार के भाव से वर्चस्व का सूक्ष्म से सूक्ष्म कण भी नष्ट हो जाने की संभावना जतायी है।
कार्यक्रम के अंत में विद्यार्थियों और शोधार्थियों ने प्रश्न पूछा तथा विभागाध्यक्ष डॉ. राम प्रवेश रजक जी ने कार्यक्रम का समापन करते हुए सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।