नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि धरती मां का संरक्षण और उसकी देखभाल हमारी बुनियादी जिम्मेदारी है। वर्तमान में यह जिम्मेदारी जलवायु परिवर्तन को रोकने की दिशा में हमें अपने कर्तव्यों का ध्यान कराती है। इन कर्तव्यों को हम काफी लंबे समय तक से नजरअंदाज करते आए हैं। उन्होंने यह आह्वान वीडियो संदेश के माध्यम से जी-20 की पर्यावरण एवं जलवायु सस्टेनेबिलिटी मंत्री स्तरीय बैठक के संबोधन में किया।
उन्होंने कहा कि जलवायु एक्शन को अंत्योदय का अनुसरण करना चाहिए। इसका अर्थ है कि हमें इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए समाज के आखिरी व्यक्ति का उत्थान और विकास सुनिश्चित हो। वैश्विक दक्षिण से जुड़े देशों का जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित है। हमें संयुक्त राष्ट्र जलवायु कन्वेंशन और पेरिस समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने में तेजी लानी चाहिए। इससे वैश्विक दक्षिण के देश अपनी विकास से जुड़ी आकांक्षाओं को जलवायु अनुरूप पूरा कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उन्हें गर्व है कि भारत अपने उदाहरण को सामने रखकर यह बात कह रहा है। हमने अपनी जलवायु प्रतिबद्धता को तेजी से पूरा किया है। आज भारत अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता के आधार पर दुनिया के पांच शीर्ष देशों में है। साथ ही अमृत सरोवर के माध्यम से हम वर्षा जल संचयन का काम कर रहे हैं। इसके तहत केवल एक साल में 63 हजार जलाशयों का निर्माण हुआ है।
उन्होंने कहा कि भारत की परंपरागत सीख यही रही है कि नदियां कभी अपना जल नहीं पीतीं और वृक्ष कभी अपना फल नहीं खाते। साथ ही बादल जो वर्षा करते हैं वह भी उस से उत्पन्न होने वाले अनाज को नहीं खाते। प्रकृति हमें केवल देती है। ऐसे में हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम उसको कुछ दें।
उन्होंने कहा, “मैं एक टिकाऊ और लचीली नीली और महासागर आधारित अर्थव्यवस्था के लिए जी20 के उच्च स्तरीय सिद्धांतों को अपनाने के लिए उत्सुक हूं। इस संदर्भ में, मैं जी20 से प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए एक प्रभावी अंतरराष्ट्रीय कानूनी-बाध्यकारी उपकरण के लिए रचनात्मक रूप से काम करने का भी आग्रह करता हूं।”