गगनयान मिशन: इसरो इस महीने के अंत तक मानवरहित उड़ान परीक्षण के लिए तैयार

नयी दिल्ली : चंद्रयान, आदित्य एल वन के बाद अब अंतरिक्ष में गगनयान मिशन भेजने की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने शनिवार को गगनयान यान के संबंध में सोशल मीडिया एक्स पर जानकारी और तस्वीरें साझा करते हुए कहा कि इसरो गगनयान मिशन के लिए मानवरहित उड़ान परीक्षण शुरू करेगा। फ्लाइट टेस्ट व्हीकल एबॉर्ट मिशन-1 (टीवी-डी1) की तैयारी चल रही है, जिसमें क्रू एस्केप सिस्टम के प्रदर्शन शामिल है। क्रू एस्केप सिस्टम यानी विकसित यान से अंतरिक्ष यात्रियों को निकालने की प्रणाली है, जिसका परीक्षण जल्दी ही किया जाएगा।

गगनयान मिशन के तहत चार महत्वपूर्ण परीक्षण किए जाने हैं। जिसमें इस महीने परीक्षण यान टीवी-डी1 का परीक्षण किया जाएगा। इसके बाद दूसरे परीक्षण यान टीवी-डी2 और पहले मानव रहित गगनयान (एलवीएम3-जी1) का परीक्षण किया जाएगा। उसके बाद परीक्षण यान मिशन (टीवी-डी3 और डी4) और एलवीएम3-जी2 को रोबोटिक पेलोड के साथ भेजने की योजना है। अंतिम चरण मानवयुक्त परीक्षण यान को लॉन्च करने का है।

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मिशन के बारे में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीवीएसएससी ) के निदेशक एस उन्नीकृष्णन नायर ने गुरुवार को बताया था कि इससे जुड़े सभी वाहन प्रणालियां प्रक्षेपण के लिए श्रीहरिकोटा पहुंच चुकी हैं। इसके पहले चरण के तहत मानवरहित परीक्षण अक्टूबर के अंत तक किया जा सकता है।

क्या है गगनयान मिशन

इसरो का गगनयान मिशन भारत का पहला और दुनिया का चौथा अंतरिक्ष मानव मिशन है। इसके रॉकेट को जीएसएलवी मार्क-III में कुछ बदलाव करके बनाया गया है, जिसे एचएलवीएम-III नाम दिया गया है। इसमें इंसानों को ले जाने वाले कैप्स्यूल और आपात स्थिति में इजेक्शन सिस्टम जोड़ा गया है। गगनयान मिशन में 3,735 किलोग्राम वजन का एक स्पेसक्राफ्ट भी है, जो अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भ्रमण करने में मदद करेगा। इसे ऑर्बिटर मॉड्यूल भी कहा जाता है। गगनयान मिशन को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया जाएगा। फिर यह करीब 3 दिनों तक पृथ्वी का परिक्रमा करेगा। इसके बाद इसके कैप्सूल (क्रू मॉड्यूल) को पैराशूट के माध्यम से समुद्र में उतारा जाएगा।

गगनयान मिशन की सफलता से भारत, पूर्ववर्ती यूएसएसआर, अमेरिका और चीन के बाद अंतरिक्ष में मानव भेजने वाला चौथा देश बन जाएगा। डेनमार्क समेत कई अन्य देश भी इस दिशा में काम कर रहे हैं।

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