शक्ति हो तो दुनिया प्रेम की भाषा भी सुनती हैः मोहन भागवत

जयपुर : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने आज कहा कि दुनिया तब ही आपको सुनती है, जब आपके पास शक्ति हो। उन्होंने कहा कि भारत विश्व का सबसे प्राचीन देश है। उसकी भूमिका बड़े भाई की है। भारत विश्व में शांति और सौहार्द के लिए कार्य कर रहा है।

डॉ. भागवत शनिवार को जयपुर के हरमाडा स्थित रविनाथ आश्रम में रविनाथ महाराज की पुण्यतिथि के कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि इस आश्रम के मंच पर मैं न तो सम्मान का अधिकारी हूं और ना ही भाषण का अधिकारी हूं। सम्मान होना ही है तो मैं अकेला तो कुछ नहीं कर रहा हूं। 100 साल से परवर्तित परंपरा चल रही है। उस परंपरा में लाखों कार्यकर्ता हैं। प्रचारको जैसे ही गृहस्थ कार्यकर्ता भी हैं। इतने सारे कार्यकर्ताओं के परिश्रम का परिणाम अगर कुछ है, अगर वह स्वागत और सम्मान योग्य हैं तो यह उनका सम्मान है। यह सम्मान संतों की आज्ञा से ही मैं ग्रहण कर रहा हूं।

संघ प्रमुख डॉ. भागवत ने कहा कि भारत में त्याग की परंपरा रही है। भगवान राम से लेकर भामाशाह को हम पूजते और मानते हैं। उन्होंने कहा कि विश्व को धर्म सिखाना भारत का कर्तव्य है लेकिन इसके लिए भी शक्ति की आवश्यकता होती है। पाकिस्तान पर हालिया कार्रवाई की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत किसी से द्वेष नहीं रखता लेकिन विश्व प्रेम और मंगल की भाषा भी तब ही कोई सुनता है जब आपके पास शक्ति हो। यह दुनिया का स्वभाव है। इस स्वभाव को बदला नहीं जा सकता, इसलिए विश्व कल्याण के लिए हमें शक्ति संपन्न होने की आवश्यकता है।

डॉ. भागवत ने कहा कि विश्व कल्याण हमारा धर्म है। विशेषकर हिंदू धर्म का तो यह पक्का कर्तव्य है। यह हमारी ऋषि परंपरा रही है जिसका निर्वहन संत समाज कर रहा है। उन्होंने रविनाथ महाराज के साथ बिताए अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि उनकी करुणा से हम लोग जीवन में अच्छा कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं। कार्यक्रम में भावनाथ महाराज ने डॉ. भागवत को सम्मानित किया। इस दौरान कई प्रमुख गण्यमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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